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परिशिष्ट १.०५ मानव कल्याण का आधार सत्य एवं अहिंसा
प्रातः स्मरणीय, त्रिकाल वन्दनीय, परम पूज्य चास्त्रि चक्रवर्ती आचार्य श्री १०८, शान्ति सागर जी का अन्तिम उपदेश
श्री देशभूषण कुलभूषण मुनियों की निर्वाण स्थली दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कुन्थलगिरि (जि. उस्मानाबाद) में परम पूज्य योगीन्द्र-चूड़ामणि, धर्म साम्राज्य नायक, श्री १०८ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य-वर्य श्री शांतिसागर महाराज का अपने यम सल्लेखना के २६वें दिन दिनांक ८.६.१६५५ बृहस्पतिवार को सायं ५-१० से ५-३२ तक (२२ मिनट) मराठी भाषा में दिया हुआ अन्तिम 'आदेश और उपदेश' का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है।
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ॐ जिनाय नमः। ॐ सिद्धाय नमः । ॐ अर्ह सिद्धाय नमः । भरत ऐरावत क्षेत्रस्य भूत, भविष्यत, वर्तमान तीस-चौबीसों भगवान नमः। सीमंधरादि बीस विद्यमान तीर्थंकर भगवान् नमो नमः । ऋषभादि महावीर तक चौदह सौ बावन गणधर देवाय नमः । चौंसठ ऋद्धिधारी मुनीश्वराय नमः । अन्तःकृत्केवलिभ्यो नमो नमः। हर एक तीर्थंकर के समय दस दरा धोरोपसर्ग विजयी मुनीश्वराय नमो नमः।
___ ग्यारह अंग चौदह पूर्व युक्त महासागर के समान शास्त्र हैं। उसका वर्णन करने वाले श्रुतकेवली नहीं हैं, उसके ज्ञाता केवली भी अब नहीं हैं; उसका वर्णन हमारे सदृश क्षुद्र मनुष्य क्या कर सकते हैं। आत्मा का कल्याण करने वाली जिनवाणी सरस्वती 'श्रुत देवी' अनन्त समुद्र समान है। उसमें कहे गए जिन धर्म धारण करने वाले जीव का कल्याण अवश्यम्भावी है। इनमें से एक अक्षर "ॐ" है। उस एक ॐ अक्षर को जो धारण करता है, उस जीव का कल्याण होता है। "सम्मेद चोटी' पर कलह करने वाले दो कपि उसी के स्मरण से स्वर्ग पहुंच गये। पद्मरुचि श्रेष्ठी के उपदेश से बैल स्वर्ग को गया। सप्त व्यसन धारी अंजन चोर को भी मोक्ष प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त नीच योनी के कुत्ते को भी जीवन्धर कुमार के उपदेश से देवगति
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