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अद्धापल्य की अर्धच्छेद राशि के असंख्यातवें भाग का विरलनकर प्रत्येक एक के ऊपर घनांगुल रख, समस्त घनांगुलों का परस्पर गुणाकार करने से जो गुणनफल आये, उसे जगच्छ्रेणी कहते हैं। अर्थात्
(अद्वापल्य को अर्धच्छेद शाश/ असख्याल) जगच्छ्रेणी (J) = घनांगुल जगच्छ्रेणी के सातवें भाग को राजू कहते हैं।
हमने पहले देखा कि मध्य लोक में द्वीप-समुद्र की संख्या २५ कोड़ा कोड़ी उद्धार पल्य के रोमराशि (समय) प्रमाण होती है तथा अन्तिम स्वयम्भूरमण समुद्र की सूची १ राजू है, इस प्रकार , (२५ कोड़ा कोड़ी उद्धार पल्य के समय प्रमाण + १)
' '- ३} लाख योजन = (177) x जगच्छ्रेणी (1) जगच्छ्रेणी का वर्ग करने पर जगत्प्रतर तथा घन करने पर लोक का प्रमाण होता है। अर्थात्
जगत्प्रतर = J और लोक (L) = (जगच्छ्रेणी) अथवा । सन्दर्भ- तिलोय पण्णत्ती भाग १, विरचित श्री यतिवृषभाचार्य, टीकाकी आर्यिका श्री।
१०५ विशुद्धमती माताजी।
१ राजू = ६२ २५
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