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परिशिष्ट १.०३
अलौकिक गणित काल परिमाण निश्चय/व्यवहार काल
काल द्रव्य अनादि निधन है, वर्तना उसका लक्षण माना गया है- जो द्रव्यों की पर्यायों के बदलने में सहायक हो उसे वर्तना कहते हैं। यह काल अत्यन्त सूक्ष्म परमाणु के बराबर है और असंख्यात होने के कारण समस्त लोकाकाश में भरा हुआ है अर्थात काल द्रव्य का एक-एक परमाणु लोकाकाश के एक- एक प्रदेश पर स्थित है। उस काल में अनन्त पदार्थों के परिणमन कराने की सामर्थ्य है। जिस प्रकार कुम्हार के चाक के घूमने में उसके नीचे लगी हुई कील कारण है, उसी प्रकार पदार्थों के परिणमन में काल द्रव्य सहकारी है। संसार के समस्त पदार्थ अपने-अपने गुण पर्यायों द्वारा स्वयमेव ही परिणमन को करते हैं और काल द्रव्य इनके परिणमन में मात्र सहकारी होता है।
काल द्रव्य के भेद- इसके निश्चय परमार्थ और व्यवहार के भेद से दो भेद हैं। निश्चय काल के आश्रय से व्यवहार की प्रवृत्ति होती है। व्यवहार काल भूत, भविष्यत तथा वर्तमान रूप होकर संसार का व्यवहार चलाने के लिये समर्थ होता है।
व्यवहार काल- एक अविभागी पुदगल जितने काल में मन्द गति से एक आकाश प्रदेश का उल्लंघन करे/ एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक गमन करे, अथवा तीव्र गति से १४ राजू जाये, उतने समय को एक समय कहते हैं।
१ जघन्ययुक्तासंख्यात समय = १ आवली
द्रव्य ६ हैं:- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और कालइनमें से प्रथम पांच पंचास्तिकाय कहलाते हैं क्योंकि ये बहुप्रदेशी हैं। काल द्रव्य एक प्रदेशी, अर्थात बहुप्रदेशी न होने से अस्ति रूप तो है, परन्तु 'अस्तिकाय' नहीं है क्योंकि काय में बहुप्रदेश होते हैं।
काल द्रव्य की संख्या = लोकाकाश के प्रदेशों की संख्या अथवा लोक प्रमाण (L)
'वर्तमान काल एक समय मात्र है और भावी काल समस्त पुदगल द्रव्यों से अनन्तगुणा है।
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