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-सात-चार-नौ पाँच--एक-दो. एक-नौ दो, तत्पश्चात् अट्ठारह स्थानों पर शून्य -४५ अंक प्रमाण राशि। यह राशि व्यवहार पल्य की रोम राशि (प) कहलाती है। व्यवहार पल्य/ सागरोपम
सौ-सौ वर्ष पश्चात एक-एक रोम खण्ड के निकालने में जितने समय में वह गड्ढा खाली होता है, उतने काल को व्यवहार पल्योपम कहते हैं। व्यवहार पल्य से संख्या का मान निकाला जाता है।
१० कोड़ा कोड़ी व्यवहार पल्योपम =१ व्यवहार सागरोपम उद्धार पल्योपम/ सागरोपम
व्यवहार पल्य की रोम राशि में से प्रत्येक रोम खण्ड के. असंख्यात करोड़ वर्ष के जितने समय हों, उतने खण्ड करके उनसे दूसरे पल्य (गड्ढे) को भरकर पुनः एक-एक समय में एक-एक रोम खण्ड निकालें। इस प्रकार जितने समय में वह दूसरा पल्य खाली होता है, उतना काल उद्धार नामक पल्य का है।
उद्धार पल्योपम की रोमराशि = प x असंख्यात करोड़ वर्ष के समय की गणना उद्धार पल्योपम = प x असंख्यात करोड़ वर्ष के समय - समय
= प x असंख्यात करोड़ वर्ष उद्धार सागरोपण -- १० कोड़ा कोड़ी उद्धार पल्योपम उद्धार पल्योपम से द्वीप-समुद्रादिक का प्रमाण लगाया जाता है। समस्त द्वीप-समुद्रों की संख्या = २५ कोड़ा कोड़ी उद्धार पल्य के समय की संख्या
प्रमाण।
अद्धा पल्योपम/ सागरोपम
उद्धार पल्य की रोम राशि में से प्रत्येक रोम खण्ड के असंख्यात वर्षों के समय- प्रमाण खंड करके तीसरे गड्ढे के भरने पर और पहले के समान एक-एक
'समय की परिभाषा अगले परिशिष्ट १०३ में दी गयी है।
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