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8 त्रुटिरेणु
-- 1 त्रसरेणु नाम का स्कन्ध होता है। 8 रारेणु
= 1 रथरेणु नाम का स्कन्ध होता है। 8 रथरेणु
= 1 उत्तम भोगभूमि का बालाग्र नाम का
स्कन्ध होता है। 8 उत्तम भोगभूमि का बालाग्र = 1 मध्यम भोगभूमि का बालाग्र नाम का स्कन्ध
होताहै। 8 मध्यम भोगभूमि का बालाग्र = 1 जघन्य भोगभूमि का बालान नाम का स्कन्ध
होता है। 8 जघन्य भोगभूमि का बालाग्न = 1 कर्मभूमि का बालाग्र नाम का स्कन्ध होता
8 कर्म भोगभूमि का बालान = 1 लीख नाम का स्कन्ध होता है। 8 लीख
= 1 सरसों (जू) नाम का स्कन्ध होता है। 8 सरसों
= 1 जौ नाम का स्कन्ध होता है। 8 जौ
= 1 उत्सेध अंगुल नाम का स्कन्ध होता है।
उत्सेधांगुल से देव, मनुष्य, तिर्यञ्च एवं नारकियों के शरीर की ऊँचाई का प्रमाण और चारों प्रकार के देवों के निवास स्थान
और नगरादिक का प्रमाण जाना जाता है। 500 उत्सेधांगुल
= 1 प्रमाणांगुल नाम का स्कन्ध होता है। भरत क्षेत्र के अवसर्पिणी काल के प्रथम चक्रवर्ती का अंगुल प्रमाणांगुल होता है। द्वीप, समुद्र, कुलाचल, वेदी, नदी, कुण्ड (सरोवर), जगती और भरतादिक क्षेत्र का प्रमाण प्रमाणागुल से होता है।
जिस-जिस काल में भरत और ऐरावत क्षेत्र में जो जो मनुष्य हुआ करते हैं उस-उस काल में उन्हीं मनुष्यों के अंगुल का नाम आत्मांगुल है। झारी, कलश, दर्पण, सिंहासन, छत्रादि, मनुष्यों के निवास स्थान एवं नगर और उद्यानादिक का प्रमाण आत्मांगुल से समझना चाहिये।
१९८५