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________________ परिशिष्ट १.०१ अलौकिक गणित - संख्यामान इसके मूल तीन भेद हैं- संख्यात, असंख्यात और अनन्त। संख्यामान की जघन्य गणना २ (दो) मानी गयी है। एक को गणना शब्द का वाच्य माना है, अतएव इसको संख्यामान नहीं माना गया है। संख्यात के तीन भेद हैं: जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। इनमें से उत्कृष्ट संख्यात जधन्य परीतासंख्यात से एक कम मानी जाती है और मध्यम संख्यात जघन्य संख्यात से एक अधिक से लेकर उत्कृष्ट संख्यात से एक कम तक होती है। असंख्यात के तीन भेद हैं: परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात, असंख्यातासंख्यात। प्रत्येक के तीन प्रभेद हैं- जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट परीतासंख्यात, जघन्य युक्तासंख्यात से एक कम होता है और मध्यम परीतासंख्यात जघन्य से एक अधिक से लेकर उत्कृष्ट से एक कम तक होता है। इसी प्रकार युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात के विषय में जानना। उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात जघन्य परीतानन्त से एक कम होता है। अनन्त के तीन भेद हैं: परीतानन्त, युक्तानन्त, अनन्तानन्त । प्रत्येक के तीन प्रभेद हैं- जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । परीतानन्त व युक्तानन्त के मध्यम व उत्कृष्ट प्रभेदों को उक्त प्रकार से ही समझना चाहिए। मध्यम अनन्तानन्त जघन्य से एक अधिक व उत्कृष्ट से एक कम तक होता है। _इस भाग में जघन्य को j, असंख्यात और अनन्त को क्रमश: a तथा A, परीता और युक्ता को क्रमशः p तथा ॥ से दर्शाया गया है। इस प्रकार जघन्य परीतासंख्यात, जघन्य युक्तासंख्यात जघन्य असंख्यातासंख्यात को क्रमशः ap au.aa; जघन्य परीतानन्त जघन्य युक्तानन्त, जघन्य अनन्तानन्त को क्रमश: Ap, Au, AA द्वारा दर्शित है। साधारणतः संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त जिनमें इनके सभी भेद आ जाते हैं, को क्रमश: F, तथा A से दर्शाया गया है, जिसमें इनके सभी भेद-प्रभेद आ जाते हैं। १.१७७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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