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________________ मोक्ष प्राप्ति के उपायों का वर्णन किया गया है। चूंकि आन्तरिक तप के अन्तर्गत एक ध्यान आवश्यक अंग है, जिसके द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति होती है, इसलिए इसका विशेष विवरण अलग से एक अध्याय में दिया गया है। यह ग्रंथ चूंकि मात्र श्रावकों को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है. इसलिए ध्यान के प्रकरण में पदस्थ, रूपस्थ, रूपातीत ध्यान जिसके मात्र पूज्य निग्रंथ मुनिराज ही अधिकारी हैं, का वर्णन नहीं किया है, जिसका विशिष्ट वर्णन ज्ञानार्णव आदि ग्रंथों में देखा जा सकता है। किन्तु पिण्डस्थ धर्मध्यान को अभ्यास के रूप में करने को प्रेरित किया गया है। । इस प्रकार इस भाग का उद्देश्य जीव को मोक्ष की प्राप्ति एवम् उसके महत्त्व की ओर अणुव्रत तथा प्रतिमाधारी श्रावकों का ध्यान आकर्षित करना है, ताकि वे सम्यक्त्व के मार्ग में अग्रसर हो सकें। अधिकारान्त एवम् प्रथम भागान्त मङ्गलाचरण पिट्ठ-वियघाइ-कम्म, केवल–णाणेण दिट्ठ-सयलत्थं । णमह मुणिसुव्वएस, भवियाणं सोक्ख-देसयरं ।।२०।। घण-घाइ-कम्म-महणं, मुणिंद-देविंद पणद-पय -कमलं। पणमह-मि-जिणणाहं, तिहुवण-भवियाण सोक्खयरं ।।२१।। इंद-सय –णमिद-चरणं, आद-सरूवम्मि सब-काल- गदं। इंदिय-सोक्ख-विमुक्कं, णेमि-जिणेसं णमंसामि ।।२२।। अर्थ- जो घातिकर्म को नष्ट करके केवलज्ञान से समस्त पदार्थों को देख चुके हैं और जो भव्य जीवों को सुख का उपदेश करने वाले हैं, ऐसे 'मुनिसुव्रतस्वामी को नमस्कार करो।।२०।। घन-घाति-कर्मों का मंथन करने वाले, मुनीन्द्र और देवेन्द्रों से नमस्कृत चरण-कमलों से संयुक्त, तथा तीनों लोकों के भव्य जीवों को सुखदायक, ऐसे नमि जिनेन्द्र को नमस्कार करो।।२१।। सौ इन्द्रों से नमस्कृत चरण वाले, सर्व काल आत्मस्वरूप में स्थित और इन्द्रिय-सुख से रहित ऐसे नेमि जिनेन्द्र को मैं नमस्कार करता हूँ ||२२।। ज १.१७५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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