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________________ जिसके मध्य में पाण्डुक शिला है। इस पाण्डुक शिला के मध्य में एक स्फटिक मणि का सिंहासन है। उस पर मैं बैठा हुआ हूँ और मेरा मुँह श्री भगवान जी के सम्मुख है। श्री प्रभु जी से निवेदन करें कि इस पिण्डस्थ ध्यान के द्वारा मैं कर्मों को नष्ट कर आपके समान अरिहन्त-सिद्ध बनना चाहता हूँ, जिसमें आपका आशीर्वाद चाहिए। __ इस प्रकार अपने को स्थित करके, कल्पना करें कि आपके नाभि के स्थान में एक सोलह दल का श्वेत कमल है, जिसके मध्य में अर्थात् नाभिस्थान में एक श्वेत कर्णिका है। कमल के सोलह पटलों पर सामने के ओर से घड़ी की दिशा (clockwise direction) में पीले रंग से क्रमश: 'अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः' इन सोलह अक्षरों का ध्यान करें और मध्य की श्वेत कर्णिका में "ह" महामंत्र का स्थापन करें। तत्पश्चात् हृदय के स्थान पर एक औंधा श्यामवर्ण के कमल का चिन्तवन करें जिसके पटलों पर क्रमशः घड़ी की दिशा में ज्ञानावरणी कर्म, दर्शनावरणी कर्म, वेदनीय कर्म, मोहनीय कर्म, आयु कर्म, नाम कर्म, गोत्र कर्म और अन्तराय कर्म, ये आठ कर्म काले रंग से लिखे हुए हैं। (ख) अग्नि धारणा इसके पश्चात् चिन्तवन करें कि अरिहन्त परमेष्ठी की कृपा से मेरी आत्म-ज्योति जगी, सिद्ध परमेष्ठी की कृपा से आत्म-शक्ति बढ़ी, आचार्य परमेष्ठी की कृपा से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई, उपाध्याय परमेष्ठी की कृपा से सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हुई और साधु परमेष्ठी की कृपा से सम्यकचारित्र की प्राप्ति हुई। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र की एकता से मोक्षमार्ग प्रशस्त हुआ और सम्यक्तप हुआ, सम्यक्तप से सम्यध्यान हुआ और सम्यध्यान के कारण नाभिमण्डल में स्थित महामंत्र "ह" के रेफ () से ध्यानाग्नि प्रकट हुई। यह ध्यानाग्नि निरन्तर वृद्धि को प्राप्त होती हुई हृदय कमल के मध्य से उसको वेधते हुई ऊपर उठी और मस्तिष्क को वेधते हुई ऊपर उठकर, फिर समस्त शरीर को त्रिकोणानुसार रूप से घेर लेती है। अग्नि की ज्वाला से रं रं रं की ध्वनि निकल रही है। उसी अग्नि से त्रिकोण के अन्दर प्रत्येक कोण पर "ॐ हैं' मंत्र को लिखें और त्रिकोण के बाहर स्वास्तिक बनायें जो चौबीसों तीर्थकरों का प्रतीक है। इस प्रकार विचारें कि मंत्राग्नि से कर्म जल रहे हैं तथा बाह्याग्नि से नोकर्म अर्थात शरीर जल रहा है। यह अग्नि प्रलय काल की अग्नि का रूप लेकर लोकाग्र तक जा पहुंची है। चूँकि कर्म, शरीर तथा अग्नि सभी १.१६६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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