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________________ द्वारा प्रतिपादित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ओर सम्यक्चारित्र की प्राप्ति कैसे हो ? आदि कारणों का उपाय, आचरण व चिन्तन करना अपाय विचय धर्मध्यान है । (ग) विपाक विचय - संसारी जीवों के द्वारा संचित किए गये कर्मों के फलोन्मुख होने को विपाक कहते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव इन पांच प्रकारों से संसार की अपेक्षा कर्म कैसे-कैसे फल देते हैं- जिस समय के लिए जो कर्म बाँधा था, वह अपने समय में उदय होता हुआ फल देता जा रहा है, उसमें हम राग-द्वेष न करें, यथार्थ मनन करना विपाक विचय धर्मध्यान है । (घ) संस्थान विचय- लोक के आकार और उसके स्वरूप का बार-बार चिन्तन करना संस्थान विचय धर्मध्यान है। इसके अन्तर्गत चार प्रकार के ध्यान हैं। पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत । इनमें क्रमशः स्वात्मा, पंच परमेष्ठी, अरिहन्त परमेष्ठी एवं सिद्ध परमेष्ठी का ध्यान किया जाता है। इसका वर्णन ज्ञानार्णव ग्रन्थ से जानना । यह ध्यान निर्ग्रथ मुनियों के लिए है, किन्तु अभ्यास के दृष्टिकोण से पिण्डस्थ ध्यान का स्वरूप निम्नवत वर्णित है, जो कथंचित श्रावक भी कर सकता है। आवक पदस्थ, रूपस्थ तथा रूपातीत ध्यान के लिए अयोग्य है । १२- पिण्डस्थ नामक संस्थान धर्मध्यान इसमें पार्थिवी, आग्नेयी, वायु, जल और तत्त्वरूपी पांच धारणायें यथाक्रम से होती हैं । (क) पृथ्वी ( पार्थिवी ) धारणा मन-वचन-काय की शुद्धिकर पद्मासन, अर्धपद्मासन अथवा सुखासन, जिसमें आकुलता न हो, बैठें। इसका सर्वोत्तम स्थान श्री जिन मन्दिर जी है। अपना मुख श्री प्रतिमा जी की ओर रखें और श्री जी से निवेदन करें कि मैं आपके समान अरिहन्त - सिद्ध बनना चाहता हूँ तथा इसमें आपकी अनुकम्पा चाहता हूँ। यदि आप अन्यत्र जगह हैं, तो जहाँ तक हो सके एकान्त में बैठें, सामने श्री भगवान जी का चित्रादि रख लें और अपना मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा में रखें। यदि पूर्व दिशा हो, तो प्रातः काल के उगते सूर्य के तरह अपने आत्मोन्नति की कामना करें और यदि उत्तर १.१६४ 2
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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