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________________ यह मंत्र पैतोस, सोलह, छह, पांच, चार, दो और एक अक्षर वाला है। अत: उसके मंत्र का जाप करो, ध्यान करो और अन्य मंत्रों को भी गुरु के उपदेश से जपो (ध्यान करो)। परमेष्ठी- जो परम पद में स्थित रहते हैं, वे परमेष्ठी कहलाते हैं इनका स्वरूप परिशिष्ट- १.०६ में दिया है। पंचत्रिंशत्यक्षरी णमोकार मन्त्र अर्थात् पैंतीस अक्षरों का मन्त्रणमो अरिहंताणं, णमोसिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं । षोडशाक्षरी मंत्र-- अहं सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः । षडक्षरी मंत्र- ॐ नमो अहेभ्यः । पंचाक्षरी मंत्र- हां ही हूं ह्रौं हः। चतुराक्षरी मंत्र- ॐ सिद्धेभ्यः। युग्माक्षरी मंत्र- अर्ह एकाक्षरी मंत्र- ॐ। ११- धर्म ध्यान धर्म से संबंधित विषय पर चित्त को एकाग्र करना धर्म ध्यान है। इसके चार भेद होते हैं(क) आज्ञा विचय- अपनी बुद्धि के मंद होने से और पदार्थ के सूक्ष्म होने से जब युक्ति और उदाहरण की गति न हो तो ऐसी अवस्था में सर्वज्ञ देव द्वारा कथित आगम में पंचास्तिकाय, छह द्रव्यों, तत्त्वों, वस्तु स्वभाव, स्थावर तथा त्रस आदि का जिस प्रकार का वर्णन किया है उसको उसी प्रकार का मानना, श्रद्धान करना, आचरण करना, उनकी आज्ञा का पालन करना आज्ञा विचय धर्मध्यान है। (ख) अपाय विचय- अपाय का अर्थ है नाश । जिस ध्यान में कर्मों का अपाय अर्थात् नाश कैसे हो, स्वयं और दूसरे जीवों के दुःखों का नाश कैसे हो ? जिनेन्द्र देव १.१६३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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