SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ग) ध्यान प्रसन्नमुख पूर्व दिशा अथवा उत्तर दिशा में मुख करके करे। पूर्व दिशा उगते हुए सूर्य अथवा आत्मा की निति का प्रतीक है। सर मिया में विदेह क्षेत्र में बीस तीर्थकर अरिहन्त भगवान विराजमान हैं, इसलिए प्रशस्त है। १०- ध्यान के योग्य मंत्र परमेष्ठी वाचक मंत्र- इसको णमोकार मंत्र भी कहते हैं। श्री मन्नेमिचन्द्र सिद्धान्त देव द्रव्य संग्रह में लिखते हैंपणतीस-सोल-छप्पण, चदु-दुगमेगं च जवह झाएह। परमेट्ठिवाचायाणं, अण्णं च गुरुवएसेण ।।४६ ।। भावार्थ- णमोकार मन्त्र में मातृका ध्वनियों का अर्थात् सृष्टिक्रम, स्थितिक्रम और संहारक्रम- इन तीनों प्रकार का क्रम सन्निविष्ट है। इसी कारण यह आत्मकल्याण के साथ लौकिक अभ्युदयों को भी देने वाला है। अष्टकर्मों के विनाश करने की भूमिका इसी मंत्र के द्वारा उत्पन्न की जा सकती है। संहारक्रम विनाश को प्रकट करता है तथा सृष्टिक्रम और स्थितिक्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अभ्युदयों की प्राप्ति में भी सहायक है। इस मंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमें मातृका ध्वनियों के तीनों प्रकार के मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। मंत्र बीजों की निष्पत्ति बीज और शक्ति के संयोग से होती है। महामंत्र की समस्त मातृका ध्वनियां निम्न प्रकार है अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु ल ए ऐ ओ औ अं अः क् ख् ग् घ् ङ् च छ ज् झ् ञ् ट् ठ् ड् ढ् ण त् थ् द् ध् न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह । जयसेन प्रतिष्ठापाठ में कहा गया हैअकारादिहकारान्ता वर्णाः प्रोक्तास्तु मातृकाः सृष्टिन्यास–स्थितिन्यास-संह्यतिन्यासलास्त्रिधा।। अर्थात- अकार से लेकर हकार पर्यन्त मातृकावर्ण कहलाते हैं। इनका तीन प्रकार का क्रम है- सृष्टिक्रम, स्थितिक्रम और संहारक्रम। ककार से लेकर हकार पर्यन्त व्यंजन वर्ण बीजसंज्ञक हैं और अकारादि स्वर शक्तिरूप हैं। १.१६२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy