SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवली होती है। एक आवली में जघन्ययुक्तासंख्यात समय होते हैं। समय काल की सबसे छोटी इकाई है। (देखिए परिशिष्ट १.०१ एवम् १.०३) ४- ध्यान प्राप्ति के उपाय श्री मन्नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव द्रव्य संग्रह में कहते हैं: तवसुद-वदवं चेदा, झााणरह-धुरंधरो हवे जम्हा। तम्हा तत्तियणिरदा, तल्लद्धीए सदा होइ ।।५७।। अन्वयार्थ- (जम्हा) जिस कारण से (तवसुदवदवं) तप, श्रुत और व्रत को धारण करने वाला (चेदा) आत्मा (झाणरहधुरंधरो) ध्यान रूपी रथ की धुरा को धारण करने वाला (हवे) होता है (तम्हा) इसलिए (तल्लद्धीए) उस ध्यान की प्राप्ति के लिए (सदा) हमेशा (तत्तिय-णिरदा) उन तीनों में लीन (होइ) होओ। अर्थ- तप, श्रुत और व्रतों को धारण करने वाला आत्मा ध्यानरूपी रथ की धुरा को धारण करने वाला होता है, इसलिए उस ध्यान की प्राप्ति के लिए हमेशा तपादि तीनों में लीन होओ। भावार्थ- कहावत है "बुद्धिर्यस्य बल तस्य" जिसके पास विवेक है, युक्ति है, वही संसार के फन्दों को सुलझाकर स्वतंत्र हो सकता है। मन और इन्द्रियों के बेलगाम घोड़ों को जब युक्ति से रोका जायेगा तभी वे हमारे अनुकूल होकर बाधक के स्थान पर साधक होंगे। क्योंकि द्रव्य-मन, भाव-मन तथा द्रव्य और भाव-इन्द्रियों पर नियन्त्रण करके बारह तप और पांच महाव्रतों का पालन करने वाला एवं शास्त्रों का मनन-चिन्तन करने वाला तपवान, श्रुतवान और व्रतवान आत्मा ही उत्कृष्ट ध्यान कर सकता है। इसलिए इस उत्तम ध्यान की प्राप्ति करने के लिए समस्त बहिरंग परिग्रहों (क्षेत्र, वास्तु, चाँदी, सोना, पशु, धान्य,दासी, दास, कुप्य, भांड) और अंतरंग परिग्रहों (मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद) का त्याग कर तप, व्रत और श्रुत में सदैव लीन रहना चाहिए। यह ही उत्कृष्ट ध्यान की प्राप्ति में कारणभूत है। जिस प्रकार रथ पर सवार होकर यह जीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाता है, उसी प्रकार तप, व्रत और शास्त्रों में लवलीन रहने वाला विशिष्ट योगी ध्यानरूपी स्थ पर आरूढ़ होकर संसाररूपी नगर से निकलकर मोक्षरूपी महानगर में पहुँच जाता है। जहाँ जाकर वह १.१५८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy