SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पूर्ण कर्मों को क्षय (नष्ट) करने में कारणभूत है वह भाव मोक्ष है। यह तेरहवें गुणस्थानवर्ती अरिहन्त परमेष्ठी (सयोग केवली) के होता है। आत्मा में लगे हुए ज्ञानावरणादि आठों कों का सर्वथा क्षय हो जाना द्रव्य मोक्ष है। यह द्रव्य मोक्ष अयोग केवली गुणस्थानवी जीव के अन्त समय में होता है क्योंकि सम्पूर्ण कर्मों की प्रकृतियों का अभाव वहीं पर होता है। आत्मा और कर्म का सम्बन्ध आदिरहित है। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि बिना भेद-विज्ञान के यह संसारी जीव कभी भी मोक्ष अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकता है। भेद-विज्ञान को प्राप्त करने के लिए दिगम्बर वेष को धारण करना जरूरी है, इसके अभाव में कभी भी भेद-विज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है। भेद-विज्ञान- आत्मा और पुद्गल इन दोनों को अलग-अलग समझना ही भेदविज्ञान है। मोक्ष मार्ग- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनों का एकरूप हो जाना ही मोक्ष मार्ग है। यह मोक्ष मार्ग दो प्रकार का है- निश्चय मोक्षमार्ग- जो मोक्ष मार्ग यथार्थ है एवं साक्षात मोक्ष का कारण है, उसे निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं। व्यवहार मोक्ष मार्ग. जो मार्ग निश्चय मोक्षमार्ग को प्राप्त कराने में हेतु (कारण) है. वह व्यवहार मोक्षमार्ग है। व्यवहार मोक्ष के बिना निश्चय मोक्षमार्ग की प्राप्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि कारण के बिना कार्य नहीं होता है। ___ अर्थात- जो जन्म, जरा, रोग, मरण, शोक, दुख और भय से रहित है, शुद्ध सुख से युक्त है तथा नित्य है ऐसा निर्वाण अर्थात मोक्ष या निःश्रेयस कहलाता है। __अथवा-- आत्मा में लगे हुए सम्पूर्ण कर्मों का क्षय हो जाना ही मोक्ष मार्ग है। मोक्ष मार्ग मुख्य रूप से दो प्रकार का है- व्यवहार मोक्ष मार्ग और निश्चय मार्ग। (क) व्यवहार मोक्षमार्ग- व्यवहार नय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनों को ग्रहण करना ही व्यवहार मोक्षमार्ग है। (ख) निश्चय मोक्षमार्ग- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनों (रत्नत्रय) से सहित आत्मा को ही निश्चय मोक्ष मार्ग कहते है। व्यवहार मोक्षमार्ग निश्चय मोक्षमार्ग को प्राप्त कराने में कारणभूत है । जिस प्रकार वृक्ष के अभाव में फल नहीं हो सकता. उसी प्रकार व्यवहार मोक्षमार्ग के बिना ११५२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy