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________________ (ख) समिति- यत्नाचार अर्थात् सम्यक प्रकार से प्रवृत्ति करना समिति है। इसके पांच भेद होते हैं- ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान-निक्षेषण समिति और व्युत्सर्ग समिति। (ग) गुप्ति- मन-वचन.काय में होने वाले हलन.-चलन को रोकना ही गुप्ति है। यह तीन प्रकार की होती है- मनोगुप्ति, वचन-गुप्ति और काय गुप्ति। यह तेरह प्रकार का चारित्र छट्टे गुणस्थानवर्ती मुनिराजों के होता है। ५- श्रावक का चारित्र उपरोक्त चारित्र निस्पृही साधु की अपेक्षा से है किन्तु किसी न किसी असमर्थतावश अथवा पुण्योदय न होने के कारण, यदि कोई मनुष्य महाव्रती अथवा सकल संयमी न बन सके तो उसे देश संयमी बनना चाहिये तथा आवक धर्म का पालन करना चाहिए। कृपया इसका वर्णन परिशिष्ट १.०६ में देखें। ६- निश्चय चारित्र का स्वरूप श्री मन्नमिचन्द्र आचार्य द्रव्य संग्रह में कहते हैं: बहिरब्भतर-किरियारोहो भव-कारणप्पणासठं । णाणिस्स जं जिणुत्तं, तं परमं सम्भचारितं ।।४६ ।। अर्थ- ज्ञानी के द्वारा संसार के कारणों का नाश करने के लिए जो बाह्य और आभ्यन्तर क्रियाओं का रोकना है वह जिनेन्द्र देव द्वारा कहा गया उत्कृष्ट सम्यक्चारित्र जानना चाहिए। भावार्थ- जिस सकलसंयमी जीव ने सम्यक्त्व को प्राप्त करने के बाद सम्यग्ज्ञान पूर्वक दुःख देने वाले संसार से छूटने के लिए मन, वचन और काय की समस्त शुभ और अशुभ, बाह्य और आभ्यन्तर क्रियाओं को रोककर आत्मा को अति निर्मल बना लिया है, उसको निश्चय सम्यक्चारित्र कहते हैं। चारित्र की पूर्णता अयोग केवली नामक गुणस्थान में होती है। शील के १८००० भेद भी इसी गुणस्थान में पूर्ण होते हैं जो निम्न प्रकार हैं : { ३ प्रकार की स्त्री (देवी,मनुष्यिणी, तिर्यञ्चनी ) x ३ (कृत, कारित. .. अनुमोदना) x ३ योग (मन, वचन, काय) x ४ संज्ञा (आहार, भय, मैथुन, परिग्रह) x १० १.१४६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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