________________
उनके सम्यक् श्रद्धान से सम्यग्दर्शन और मिथ्या श्रद्धान से मिथ्यादर्शन होता है। जो तत्त्व नहीं है अथवा जो मोक्षमार्ग से सम्बन्धित नहीं है, उनके सम्यक् या मिथ्या श्रद्धान से सम्यग्दर्शन का कोई ताल्लुक नहीं है।
नय वस्तु के एक देश को जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं । इसके दो भेद होते हैं- व्यवहार नय और निश्चय नय ।
(क) व्यवहार नय - किसी निमित्तवश एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ रूप जानने वाले ज्ञान को व्यवहार नय कहते हैं। जैसे पीतल के घड़े में पानी के रहने के निमित्त से उसे पानी का घड़ा कहना ।
(ख) निश्चय नय - वस्तु के वास्तविक अंश को ग्रहण करने वाले ज्ञान को निश्चय नय कहते हैं । जैसे दूध से भरे हुए मिट्टी के घड़े को देखकर मिट्टी का घड़ा कहना । निश्चय नय के दो भेद हैं- द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय ।
(ग) द्रव्यार्थिक नय - जो नय केवल द्रव्य अथवा सामान्य को ग्रहण करता है उसको द्रव्यार्थिकनय कहते हैं ।
(घ) पर्यायार्थिक नय - जो नय विशेष गुण या विशेष पर्याय को विषय करता है वह पर्यायार्थिकनय कहलाता है।
(२) सम्यग्दर्शन का लक्षण
जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वों या पदार्थों का जिनेन्द्र भगवान् ने जैसा वर्णन किया है वैसा ही मानना, श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। करणानुयोग के ग्रन्थों में सम्यग्दर्शन का लक्षण बताते हुए कहा है-- मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व दर्शन मोहनीय और अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ इन सात प्रकृतियों के उपशम अथवा क्षयोपशम अथवा क्षय से श्रद्धा गुण की जो निर्मलता प्रकट होती है उसे सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन दो प्रकार का होता है- निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शन ।
(क) निश्चय सम्यग्दर्शन- शुद्धनय से समस्त द्रव्यों से भिन्न आत्मा की सब पर्यायों में व्याप्त पूर्णचैतन्य रूप केवलज्ञान समस्त लोकालोक को जानने वाले आत्मा के असाधारण चैतन्य धर्म को दिखलाता है, उसको यह व्यवहारी जीव आगम को प्रमाण मानकर आत्म-श्रद्धान करे, यही श्रद्धान निश्चय सम्यग्दर्शन है ।
१.१४२