________________
ओर से क्रमशः घनोदधि वातवलय, घनवातवलय और तनुवातवलय द्वारा वेष्ठित है। लोक घनोदधिवातवलय के. घनोदधिवातवलय घनवातवलय के, घनवातवलय तनुवातवलय के और तनुवातवलय आकाश के आश्रित हैं। लोक के कथन में अलौकिक गणित का उपयोग हुआ है- इसके लिये परिशिष्ट १.०१, १.०२ तथा १.०३ देखिये।
___ मध्य लोक में एक रत्नप्रभा नामक पृथ्वी है, जिसमें अधोलोक का एक भाग भी है। शेष अधोलोक में अन्य छह पृथ्वी (शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा) तथा लोकांत में एक अष्टम ईषत्प्राग्भार पृथ्वी है। मध्य लोक में व्यन्तर, ज्योतिष्क देव तथा प्रथम पृथ्वी में भवनवासी देव तथा प्रथम रत्नप्रभा नरक है, अधोलोक की अन्य छह पृथ्वियों में क्रमश: दूसरा शर्कराप्रभा, तीसरा बालुकाप्रभा, चौथा पंकप्रभा, पांचवा धूमप्रभा, छठा तमःप्रभा और सातवां महातमःप्रभा नरक स्थित है। इस प्रकार नीचे के छह राजू में सात नरक तथा अन्त के एक राजू में मात्र निगोद जीवों की राशि है जो कि अनन्तानन्त प्रमाण है।
मध्य लोक में रत्नप्रभा पृथ्वी के उपरिम भाग में १ लाख योजन गोल प्रथम जम्बूद्वीप, उसको वेष्ठित चारों ओर वलयाकार दो लाख योजन चौड़ा लवण समुद्र, इसको वेष्ठित वलयाकार चार लाख योजन चौड़ा धातकीखंड द्वीप, इसको वेष्ठित वलयाकार आठ लाख योजन चौड़ा कालोदधि समुद्र, इसको वेष्ठित वलयाकार सोलह लाख योजन चौड़ा पुष्कर द्वीप, फिर इसी प्रकार असंख्यात समुद्र, द्वीप हैं तथा अन्त में स्वयम्भूरमण द्वीप, फिर स्वयम्भूरमण समुद्र है। इस प्रकार इनका व्यास क्रमशः १ लाख योजन, ५ लाख योजन, १३ लाख योजन, २६ लाख योजन, ६१ लाख योजन, .... ...... तथा अन्त के स्वयम्भूरमण समुद्र का एक राजू है। पुष्कर द्वीप के प्रथम अर्ध भाग की सोलह लाख से आधी अर्थात आठ लाख योजन चौड़ाई है, इस द्वीप में बीच में गोलाकार मानुषोत्तर पर्वत है। जम्बू द्वीप, लवण समुद्र, धातकीखंड द्वीप, कालोदधि समुद्र व इस (प्रथम अध) पुष्करार्द्ध द्वीप अर्थात मानुषोत्तर पर्वत तक मानुष क्षेत्र है, अर्थात मनुष्य केवल इसी क्षेत्र में रह सकते हैं और इसका उल्लंघन नहीं कर सकते। इसका व्यास ४५ लाख योजन है।
ऊर्ध्व लोक में विमानों में कल्पवासी देव हैं, जो कि सौधर्म-ईशान, माहेन्द्रसानत्कुमार, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लांतव-कापिष्ठ, शुक्र-महाशुक्र, शतार-सहस्त्रार,