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________________ आनत-प्राणत तथा आरण-अच्युत सोलह स्वर्गों के नाम से विख्यात हैं। इसके आगे कल्पातीत विमान हैं। सोलहवें स्वर्ग के ऊपर अधो-मध्य-ऊर्ध्व ग्रैवेयिक विमान हैं। अभव्य जीव इनसे ऊपर नहीं जा सकते हैं। ग्रैवेयिक के ऊपर नव अनुदिश तथा पांच विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि नामक अनुत्तर विमान हैं। सर्वार्थसिद्धि विमान के ऊपर अष्टम ईषत्प्राग्भार नामक पृथ्वी है, जिसके उपरिम भाग में ४५ लाख योजन प्रमाण गोल सिंद्ध शिला है। ___ इसके ऊपर सिद्धशिला के भी ऊपर तनुवातवलय के अन्तिम भाग में त्रिकाल वन्दनीय, सर्वोत्कृष्ट पद के धारक, अनन्तानन्त सिद्ध भगवान विराजमान हैं, जिनके चरणों की नित्य प्रति, उत्कृष्ट भक्ति एवम् विनयपूर्वक मैं वन्दना करता हूं। लोकाकाश में आकाश के अतिरिक्त पांच अन्य द्रव्य - जीव (जिनका प्रमाण अनन्तानन्त है), पुद्गल द्रव्य (जो जीव द्रव्य से अनन्त गुणे हैं), धर्म द्रव्य (जो लोक प्रमाण असंख्यात प्रदेशी हैं), अधर्म द्रव्य (जो लोक प्रमाण असंख्यात प्रदेशी हैं) और काल द्रव्य है (जो एक प्रदेशी है, अर्थात लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु अवस्थित है और इस प्रकार समस्त कालाणुओं की कुल संख्या लोक प्रमाण असंख्यात है)। धर्म-अधर्म द्रव्य क्रमशः जीव व पुद्गल के गमन/ स्थिति में सहकारी हैं, काल द्रव्य समस्त द्रव्यों के वर्तना में सहकारी है तथा आकाश द्रव्य समस्त द्रव्यों को अवकाश देने में सहकारी है। लोक के बहु मध्य भाग में ऊपर लोकान्त से कुछ कम (अर्थात ३, २१, ६२, २४१२ धनुष कम) तेरह राजू नीचे तक, एक राजू चौड़े और एक राजू मोटे भाग में त्रस जीव (द्वीइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पर्यन्त) अवस्थित हैं किन्तु उपपाद और मारणांतिक समुद्घात में परिणत त्रस तथा लोकपूरणसमुद्घात को प्राप्त केवली का आश्रय करके सारा लोक त्रस-नाली है। इन तीन अवस्थाओं में त्रस जीव त्रस-नाली के बाहर भी पाये जाते हैं। समुद्घात का वर्णन आगे क्रम (६) (झ) (१४) में दिया है। एकेन्द्रिय जीव समस्त लोक में हैं। तीन लोक का दिग्दर्शन चित्र १.०१ व १.०२ में दिया है। १.४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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