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________________ भावार्थ- आगम में ऐसी तेईस प्रकार की पुदगल-वर्गणाओं का वर्णन किया .... गया है जो समस्त लोक में भरी हुई हैं। उनमें अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु कर्म रूप होने की योग्यता वाले हैं, शेष नहीं, जैसे चुम्बक में लोहे को खींचने की शक्ति विद्यमान है, अन्य पीतल, सोना, चाँदी आदि धातुओं को नहीं है। जब कभी भी जीव किसी भी स्थान पर कषाय से सहित होता है तो वह योगजन्य हलन-चलन क्रिया को करता है। और वह चारों तरफ से कर्म योग्य पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करता है। इन्हीं पुद्गल परमाणुओं को बन्ध कहते हैं। जीव को बन्ध होता है, यह सब व्यवहार नय का कथन है। निश्चय नय से आत्मा सदा स्वतंत्र है, उसमें किसी भी प्रकार का कर्मबन्ध नहीं है क्योंकि कर्म और आत्मा दोनों भिन्न भिन्न हैं। बन्ध के दो भेद होते हैं- भाव बन्ध और द्रव्य बंध। 'भावबन्ध' जिन रागादिक परिणामों से जीव बंधता है उन भावों को त्रिलोकीनाथ ने भावबंध कहा है और जो चैतन्य प्रदेशों पर नये कर्म बंधते हैं उनको द्रव्यबंध जानना चाहिए। जिस प्रकार दूध और पानी परस्पर में एकमेक होकर मिल जाते हैं उसी प्रकार भावबंध के कारण जो पुद्गल परमाणुओं का आत्मा के साथ एकमेक हो जाना है. उसे ही द्रव्यबन्ध कहते हैं। कर्मों का ग्रहण योगों के निमित्त से होता है, योग मन-वचन-काय के व्यापार से होता है। बन्ध भावों के निमित्त से होता है और भाव रति, राग-द्वेष तथा मोह से होते हैं। भावबंध और द्रव्यबंध का लक्षण बताते हुए आचार्य कहते हैं कि जो उपयोग स्वभाव वाला जीव अनेक प्रकार के इष्ट अनिष्ट विषयों को पाकर मोहित होता है, राग करता है अथवा द्वेष करता है, वह उन्हीं भावों से बन्ध को प्राप्त होता है। जीव इन्द्रियों के विषयों में आए हुए इष्ट अनिष्ट पदार्थों को जिस भाव से जानता है, देखता है और राग करता है, उसी भाव से पौद्गलिक द्रव्य कर्म का बन्ध होता है, ऐसा उपदेश है। इस कथन को स्पष्ट करते हुए आचार्य उमास्वामी कहते हैं___"सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुदगलानादत्ते स बन्धः" अर्थात कषाय सहित होने से जीव जो कर्म के योगय पुद्गलों को ग्रहण करता है, वह बंध है। दौलतराम जी कहते हैं- "जीव प्रदेश बंधे विधिसो सो बंधन" अर्थात् आत्मा के प्रदेशों का कर्मों से बंधना बन्ध कहलाता है। ११३५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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