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________________ शरीर नान फर्म कहते हैं। जिसके उदय से एक शरीर के अनेक जीव स्वामी हो, उसको साधारण नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से शरीर के रसादिक धातु' और वातादि उपधातु अपने-अपने ठिकाने (स्थिर) रहें, उसको स्थिर नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से शरीर के धातु और उपधातु अपने-अपने ठिकाने न रहैं, अर्थात चलायमान होकर शरीर को रोगी बनावें, उसको अस्थिर नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से मस्तक आदि शरीर के अवयव और शरीर सुंदर हो, उसे शुभ नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से शरीर के मस्तकादि अवयव सुन्दर न हों, उसको अशुभ नाम कर्म कहते हैं। जिस कर्म के उदय से दूसरे जीवों को अच्छा लगने वाला शरीर हो, उसको सुभग नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से रूपादि गुण सहित होने पर भी शरीर दूसरे जीवों को अच्छा न लगे, उसे दुर्भग नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से स्वर (आवाज) अच्छा हो, उसे सुस्वर नाम कर्म कहते । जिसके उदय से स्वर अच्छा न हो, उसे दुःस्वर नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से कान्ति सहित शरीर हो, उसे आदेय नाम कर्म कहते जिसके उदय से प्रभा (कान्ति) रहित शरीर हो, उसे अनादेय नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से अपना पुण्यगुण जगत में प्रकट हो, अर्थात संसार में (६०) । रसद्रक्त हतो मांसं मांसान्मेदः प्रवर्तते । भेदतोऽस्थि ततोमज्ज मज्जाच्छुक्रस्ततः प्रजा ।।१।। अर्थात् रस से लोही, लोही से मांस, मांस से मेद, मेद से हाड, हाड़ से मज्जा, मज्जा से वीर्य होता है। इस तरह सात धातु हैं। 'वात: पित्तं श्लेष्मा शिरा स्नायुश्च चर्म च । जठराग्निरिति प्राज्ञैः प्रोक्ताः सप्तोपधातवः ।। अर्थात् वात, पित्त, कफ, शिरा, स्नायु, चाम (चम), पेट की आग ये सात उपधातु हैं। १.१३२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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