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________________ (६६) . (७०, ७१) जिस कर्म के उदय से ऐसा शरीर मिले जो लोहे के गोले की तरह भारी और आक की रूई की तरह हल्का न हो, उसे अगुरुलघु नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से बड़े सींग, लम्बे स्तन अथवा मोटा पेट इत्यादि अपने ही घातक अंग हों, उसे उपघात नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से तीक्ष्ण सींग, नख. सर्प आदि की दाढ़ इत्यादि पर के घात करने वाले अवयव हों, उसे परघात नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से श्वासोच्छवास हो, उसे उच्छवास नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से पर को आताप करने वाला शरीर हो उसे आतप नामकर्म कहते हैं। जिस कर्म के उदय से उद्योत रूप (आतापरहित प्रकाशरूप) शरीर हो उसे उद्योत नाम कर्म कहते हैं। उसका उदय चन्द्रमा के बिंब में और जुगनू आदि जीवों के होता है। जिस कर्म के उदय से आकाश में गमन हो, उसे विहायोगति नाम कर्म कहते हैं। उसके प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगति ये दो भेद हैं। जिसके उदय से दो इन्द्रियादि जीवों में जन्म हो, उसे त्रस नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से एकेन्द्रिय (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पतिकाय) में जन्म हो, उसे स्थावर नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से ऐसा शरीर हो जो कि दूसरे को रोके और दूसरे से आप रुके, उसे बादर नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से ऐसा सूक्ष्म शरीर हो जो कि न तो किसी को रोके और न किसी से रुके, उसे सूक्ष्म नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से जीव अपने-अपने योग्य आहारादि (आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वसोच्छवास, भाषा और मन) पर्याप्तियों को पूर्ण करें, वह पर्याप्ति नाम कर्म है। जिसके उदय से कोई भी पर्याप्ति पूर्ण नहीं हो, अर्थात लब्ध्यपर्याप्तक अवस्था हो, उसे अपर्याप्ति नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से एक शरीर का एक ही जीव स्वामी हो, उसे प्रत्येक
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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