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________________ संहनन (हाड़ों का समूह ) वज्र के समान हो अर्थात् इन तीनों का किसी शस्त्र से छेदन भेदन न हो सके उसे वजवृषभनाराच संहनन, यदि ऐसा शरीर हो जिसके वज्र के हाड़ और वज्र की कीली हों परन्तु बेठन वज्र के न हों उसे वज्रनाराच संहनन, जिसके उदय से शरीर में एजरहित (साधारण) बेठन और कीली सहित हाड़ हो उसे नाराच संहनन, जिसके उदय से हाड़ों की संधियां आधी कीलित हों उसे अर्ध नाराचसंहनन, जिसके उदय से हाड़ परस्पर कीलित हों उसे कीलित संहनन और जिसके उदय से जुदे-जुदे हाड़ नसों से बंधे हों, परस्पर ( आपस में) कीले हुए न हों वह असंप्राप्तसृपाटिका संहनन नाम कर्म है। (४०) से (४४) जिसके उदय से शरीर में रंग हो वह वर्ण नाम कर्म है- उसके कृष्ण वर्ण, नील वर्ण, रक्त (लाल) वर्ण, पीत वर्ण, श्वेत वर्ण- ये पांच भेद हैं। (४५) से (४६) जिसके उदय से शरीर में गंध हो, उसे गंध नाम कर्म कहते हैंउसके सुरभि गंध और असुरभि गंध ये दो भेद हैं। (४७) से (५१) जिसके उदय से शरीर में रस हो, उसे रस नाम कर्म कहते हैं। उसके तिक्तरस कटुक रस कषाय ( कसैला ) रस, आम्ल (खट्टा ) रस, मधुर (मीठा) रस ये पांच भेद हैं। (५२) से (५६) जिसके उदय से शरीर में स्पर्श हो, वह स्पर्श नाम कर्म है। इसके कर्कश (छूने में कठिन) स्पर्श, मृदु स्पर्श, गुरु ( भारी ) स्पर्श लघु ( हल्का ) स्पर्श, शीत स्पर्श, उष्ण स्पर्श, सिनग्ध स्पर्श, रूक्ष स्पर्श, ये आठ भेद हैं। (६०) से (६३) जिस कर्म के उदय से मरण के पीछे और जन्म से पहले अर्थात विग्रह गति में मरण से पहले के शरीर का आकार आत्मा के प्रदेश रहें, अर्थात पहले शरीर के आकार का नाश न हो उसे आनुपूर्व्य नाम कर्म कहते हैं। वह चार प्रकार का है- जिसके उदय से नरक गति के सन्मुख जीव के शरीर का आकार विग्रह गति में पूर्व शरीराकार रहे उसे नरकगति प्रायोग्यानुपूर्व्य इसी प्रकार तिर्यंचगति प्रायोग्यानुपूर्व्य, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्व्य, देवगति प्रायोग्यानुपूर्व्य नाम कर्म भी जानना | १.१३०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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