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(१०) से (१४) जिसके उदय से शरीर बने, उरो शरीर नाम कर्म कहते हैं। इसके
औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्माण शरीर-ये पाँच भेद
(१५) से (१६) शरीर नाम कर्म के उदय से जो आहार-वर्गणा रूप पुद्गल के स्कन्ध
इस जीव ने ग्रहण किये थे उन पुद्गल स्कन्धों के प्रदेशों (हिस्सों) का जिस कर्म के उदय से आपस में सम्बन्ध हो, उसे बंध नाम कर्म कहते हैं। इसके औदारिकशरीरबंधन, वैक्रियिकशरीरबंधन, आहारकशरीरबंधन,
तैजसशरीर बंधन और कार्माणशरीरबंधन-इस रीति से पाँच भेद हैं। (२०) से (२४) जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों के परमाणु आपस में मिलकर
छिद्ररहित बंधन को प्राप्त होकर एक रूप हो जायें उसे संघात नाम कर्म कहते हैं। यह औदारिकशरीरसंघात, वैक्रेयिकशरीरसंघात, आहारकशरीर संघात, तैजसशरीरसंघात और कार्माणशरीरसंघात-इस
तरह से पाँच प्रकार का है। (२५) से (३०) जिस कर्म के उदय से शरीर का आकार बने, उसे संस्थान नाम कर्म
कहते हैं। जिसके उदय से शरीर का आकार ऊपर नीचे तथा बीच में समान हो. अथार्त जिसके आंगोपाङ्गो की लम्बाई चौड़ाई सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ठीक-ठीक बनी हो वह समचतुरस्त्रसंस्थान, शरीर का आकार न्यग्रोध (बड़ के वृक्ष) सरीखा नाभि के ऊपर मोटा ओर नाभि के नीचे पतला हो वह न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान, स्वाति नक्षत अथवा सर्प की बॉमी के समान शरीर का हो अर्थात ऊपर से पतला और नाभि से नीचे मोटा हो वह स्वाति संस्थान, कुबड़ा शरीर होने से कुब्जकसंस्थान, बौना शरीर होने से वामन संस्थान और शरीर के
आंगोपांग किसी खास शक्ल के न हों और भयानक बुरे आकार के बने हो उसे हंडक संस्थान नाम कर्म कहते हैं। इस तरह से संस्थान
नाम कर्म छह प्रकार का है। (३१) से (३३) जिसके उदय से आंगोपांग का भेद हो, वह आंगोपांग कर्म है- उसके
औदारिक,वैकियिक और आहारक ये तीन भेद हैं। (३४) से (३६) जिसके उदय से हाड़ों के बंधन में विशेषता हो उसे संहनन नाम कर्म
कहते हैं। वह छ: प्रकार का है- यदि ऋषभ (बेठन) नाराच (कीला)
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