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________________ पाया जाता। प्रभाव, सुख, लेश्या आदि की अपेक्षा से भी वे मनुष्यों से निकृष्ट हैं। महाव्रतादि गुणों को वे धारण नहीं कर सकते। इस गति में जिनका प्रमाण सबसे अधिक है, उन एकेन्द्रिय जीवों ने तथा असंज्ञि पंचेन्द्रिय पर्यन्त त्रस जीवों में भी जिससे सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है ऐसी विशुद्धि नहीं पायी जाती। अतएव यह पर्याय अत्यन्त पाप बहुल है। सारांश यह है कि जिसके होने पर ये भाव हुआ करते या पाये जाते हैं, जीव की उस द्रव्य पर्याय को ही तिर्यग्गति कहते हैं। (ग) मनुष्य गति जो नित्य ही हेय-उपादेय, तत्त्व-अतत्त्व, आप्त-अनाप्त, धर्म-अधर्म आदि का विचार करें, और जो मन के द्वारा गुण दोषादि का विचार स्मरण आदि कर सकें, जो पूर्वोक्त मन के विषय मे उत्कृष्ट हों, शिल्प कला आदि में भी कुशल हों तथा युग की आदि में जो मनुओं से उत्पन्न हों उनको मनुष्य कहते हैं। भावार्थ- मन का विषय तीव्र होने से गुणदोषादि विचार, स्मरण आदि जिनमें उत्कृष्ट रूप से पाया जाय, अवधानादि करने में जिनका उपयोग दृढ़ हो, तथा कर्मभूमि की आदि में आदीश्वर भगवान् तथा कुलकरों ने जिनको व्यवहार का उपदेश दिया इसलिए जो उन्हीं की-मनुओं की सन्तान कहे या माने जाते हैं, उनको मनुष्य कहते हैं। क्योंकि अवबोधनार्थक मनु धातु से मनु शब्द बनता है और जो मनु की सन्तान हैं उनको कहते हैं मनुष्य । अतएव इस शब्द का यहां पर जो अर्थ किया गया है, वह निरुक्ति के अनुसार है। लक्षण की अपेक्षा से अल्पारम्भ परिग्रह के परिणामों द्वारा संचित मनुष्य आयु और मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से जो ढ़ाई द्वीप के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले हैं उनको कहते हैं मनुष्य | ये ज्ञान विज्ञान मन पवित्र संस्कार आदि की अपेक्षा अन्य जीवों से उत्कृष्ट हुआ करते हैं। यद्यपि लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों में यह विशेष स्वरूप-निरूक्त्यर्थ घटित नहीं होता, फिर भी उनको मनुष्य गति नाम कर्म और मनुष्य आयु के उदय रूप लक्षण मात्र की अपेक्षा से मनुष्य कहते हैं, ऐसा समझना चाहिए। (घ) देव गति जो देव गति में होने वाले या पाये जाने वाले परिणामों-परिणमनों से सदा सुखी रहते हैं और जो अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, १.११९
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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