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________________ विसदृश दोनों प्रकार के होते हैं और भिन्न-समयवर्ती जीवों के परिणाम विसदृश ही होते हैं। अनिवृत्तिकरण- जहाँ सम-समयवर्ती जीवों के परिणाम सदृश ही और भिन्नसमयवर्ती जीवों के परिणाम विसदृश ही होते हैं, उसे अनिवृत्तिकरण कहते हैं। ये अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण गुणस्थान संज्वलन कषाय के उदय की मन्दता में क्रम से प्रकट होते हैं। सूक्ष्मसाम्पराय- जिस गुणस्थान में अत्यन्त सूक्ष्म अवस्था को प्राप्त मात्र लोभ कषाय शेष रहता है उसे सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान कहते हैं। उपशान्तमोह- उपशम श्रेणी वाला जीव दसवें गुणस्थान में चारित्रमोह का पूर्ण उपशम कर उपशान्त मोह गुणस्थान में आता है। इसका मोह पूर्ण रूप से शांत हो चुकता है और शरद् ऋतु के सरोवर के समान इसकी सुन्दरता होती है। अन्तर्मुहूर्त तक इस गुणस्थान में ठहरने के बाद जीव नियम से नीचे गिर जाता है। क्षीणमोह- क्षपकश्रेणी वाला जीव चारित्र मोहनीय का पूर्ण क्षय कर क्षीणमोह गुणस्थान में आता हैं। यहाँ इसका मोह बिलकुल ही क्षीण हो चुकता है और स्फटिक के पात्र में रखे हुए स्वच्छ जल के समान इसकी स्वच्छता होती है। सयोगकेवली- यहाँ घातिया कर्म की ४७ और अघातिया कर्म की १६, इस तरह ६३ कर्म-प्रकृतियों के क्षय हो जाने के फलस्वरूप केवलज्ञान प्रकट होता है तथा योगसहित प्रवृत्ति होती है, इसे सयोगकेवलीजिन गुणस्थान कहते हैं। ___ अयोगकेवली- योग के नष्ट होते ही ये परमात्मा अयोग केवली हो जाते हैं। शरीर के क्षेत्र में रहते हुए भी इनके प्रदेशों का शरीर से सम्बन्ध नहीं रहता। इनका काल 'अ, इ, उ, ऋ, ल' इन पांच हस्व अक्षरों के बोलने के बराबर रहता है। इस गुणस्थान के उपान्त्य और अन्त्य समय में शेष बची हुई ७२ और १३ प्रकृतियों का क्रमशः क्षय हो जाता है। इसके बाद ही ये प्रभु गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान् हो जाते हैं। १.९४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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