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________________ ४. स्वयं की विभिन्न पवित्र स्थलों की ऊर्जा यात्रा भाग ५ के अध्याय ३६ के क्रम ५ के अनुसार एक तीन इंच का ev का वाहन तैयार करें। तत्पश्चात अपने को स्वयं को एक इंच दृश्यीकृत करते हुए, उस वाहन में प्रवेश कर जाएं। फिर ev के उस वाहन के द्वारा विभिन्न तीर्थक्षेत्रों, विदेह क्षेत्रों एवम् मन्दिरों की यात्रा करके वहाँ विराजित पंच परमेष्ठी के दर्शनों का आनन्द उठाइये। आप नन्दीश्वर द्वीप आदि भी जा सकते हैं, जहाँ मानुषोत्तर पर्वत को उल्लघंने का कोई व्यवधान नहीं पड़ेगा। अध्याय ४ अध्यात्म के क्षेत्र में प्राण ऊर्जा द्वारा गहन प्रवेश १. प्रथम चरण - पंच परमेष्ठी की प्रतिष्ठा अध्याय ३ में वर्णित प्रक्रियाओं का अच्छी तरह अभ्यास करें। णमोकार मंत्र व पंच परमेष्ठी में सतत् भक्तिपूर्वक ध्यान करें, यहाँ तक कि वह एक जुनून का रूप लेले। उनके गुणों का लगातार चिन्तवन करें। फिर जब आप पूर्णतः निश्चित हो जाएं कि कोई आपको व्यवधान (disturb) नहीं करेगा, तब जाग्रत बैठी अवस्था अथवा जाग्रत लेटे रहने की अवस्था में आंखें बंद करके ev का उपयोग करते हुए, निम्न क्रियायें करें :(क) विदेह क्षेत्र में विराजित विद्यमान विंशति तीर्थंकरों के चरणों में भक्ति एवम विनयपूर्वक नमोऽस्तु, शिरोनति एवं आवर्त करते हुए, उनसे प्रार्थना करें कि वह आपके साथ सिद्ध लोक चलें। इस प्रार्थना को बार-बार दोहराते हुए, उनको अत्यन्त भक्ति एवम् विनयपूर्वक अपने सिर पर विराजमान करते हुए सिद्ध लोक लेजाएं। इसी प्रकार की प्रार्थना विदेह क्षेत्र में विराजमान समस्त केवली भगवानों से करें एवम् उनको सिद्ध लोक ले जाएं। (ख) ढाई द्वीप में विराजमान समस्त आचार्यों, उपाध्यायों एवम् साधुओं के चरणों में भक्ति एवम् विनयपूर्वक नमोऽस्तु, शिरोनति एवम् आवर्त करते हुए, उनसे प्रार्थना करें कि वह आपके साथ सिद्ध लोक चलें। इस प्रार्थना को बार-बार दोहराते ६.१०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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