SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1053
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुए, उनको अत्यन्त भक्ति एवम् विनयपूर्वक अपने सिर पर विराजमान करते हुए सिद्ध लोक ले जाएं। (ग) सिद्ध लोक में विराजमान चौबीसों भगवान एवम् अन्य अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठियों (जिनके नाम आपको स्मरण हों, उनको नामों से स्मरण करते हुए) के चरणों में भक्ति एवम् विनयपूर्वक नमोऽस्तु, शिरोनति एवम् आवर्त करें। (घ) ev से प्रार्थना करते हुए एक अत्यन्त रमणीय एवम् दिव्य सिंहासन बनाने के लिए कहें। इसको सुनिश्चित करने के पश्चात्, आप विराजित समस्त अरिहन्त, आचार्य, उपाध्याय, साधु एवम् सिद्ध परमेष्ठियों के चरणों में सिर रखकर अत्यन्त भक्ति एवम् विनयपूर्वक बार-बार प्रार्थना करें कि वे इस सिंहासन में दिलजान हो जाएं एका अपके साथ चलें। आप कल्पना करें कि अरिहन्त, सिद्ध (अशरीर). आचार्य, उपाध्याय एवम् साधु (मुनि) परमेष्ठी के प्रथम अक्षरों अ, अ, आ, उ, म से अ + अ + आ + उ + म = आ + आ + उ + म = आ + उ + म - ओ + म - ओम् अथवा ॐ बन गया। अर्थात समस्त पंच परमेष्ठी इस महा पवित्र एक अक्षर वाले ॐ में गर्भित हो गये। यह ॐ इतना तीव्र सफेद प्रकाश वाला होगा, कि जिसकी तीव्रता करोड़ों सूर्य से भी अधिक होगी जैसा कि भाग ५ के अध्याय ३ (ग) में द्वि-हृदय पर ध्यान-चिन्तन के प्रकरण में ॐ के विषय में वर्णित है। आप इस ॐ को अत्यन्त भक्तिपूर्वक उस दिव्य सिंहासन में विनयपूर्वक प्रतिष्ठित कराएं। फिर उस दिव्य सिंहासन को अपने सिर पर रखें और धीरे धीरे उसको सिद्ध लोक से लाकर, यहाँ अपने ब्रह्म-ऊर्जा चक्र में ले आवें एवम् ॐ में प्रतिष्ठित समस्त पंच परमेष्ठियों को उस दिव्य सिंहासन सहित स्थापित करें। जब आप इसमें सफल हो जाएंगे, तो पायेंगे कि उसका तीव्र दिव्य प्रकाश सब ओर फैल रहा है। ॐ की एक प्रतिबिम्बित प्रतिकृति को अगले हृदय ऊर्जा चक्र द्वारा हृदय में धारण करें। आपकी समस्त आत्मा में एक अत्यन्त दिव्य प्रकाश व दिव्य आनन्द फैल जाएगा, जिसका वर्णन शब्दातीत होगा और मात्र अनुभवगम्य ही होगा। आप यह भी पायेंगे कि आपके ब्रह्म ऊर्जा चक्र के माध्यम से, ॐ के प्रभाव से एक अनुपम दिव्य ऊर्जा आपके समस्त शरीर में प्रवेश कर रही है। कभी-कभी यह ऊर्जा की मात्रा इतनी ६.११
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy