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रोमांचित कर रही है। अर्थात इधर से आप भक्तिपूर्वक अपने ऊर्जा के माध्यम से उनके श्री चरणों में शिरोनति कर रहे हैं, जिसके फलस्वरूप उनके श्री चरणों की आशीर्वादात्मक ऊर्जा आपको ग्रहण हो रही है और इस प्रकार इन दोनों प्रकार की ऊर्जाओं का आदान प्रदान हो रहा है। जब तक आप इस
स्थिति में रहना चाहें, रहिए। २. पंच परमेष्ठी को परोक्ष नमस्कार -
क्रम १ में वर्णित क्रिया का अभ्यास हो जाने के बाद, अब आप उन तीर्थक्षेत्रों, मन्दिरों एवम् उन गुरुओं का स्मरण कीजिए, जिनके दर्शनों का सौभाग्य आपने कभी प्राप्त किया हो। भाग ५ के अध्याय ७ में वर्णित दूरस्थ प्राण चिकित्सा के सिद्धान्तानुसार, अब क्रम १ में वर्णित क्रिया को उन तीर्थक्षेत्रों/मन्दिरों में विराजित जिन प्रतिमाओं एवम् गुरुओं के श्री चरणों के प्रति दोहरायें तथा निरन्तर अभ्यास करें।
ततपश्चात् उन तीर्थक्षेत्रों, जिन मन्दिरों में विराजित जिन प्रतिमाओं एवम् गुरुओं के श्री चरणों के प्रति उक्त क्रिया दोहरायें, जिनको यद्यपि आपने देखा तो न हो, परन्तु जिनकी फोटो आपके पास उपलब्ध हो। ३. ऊर्जा के दीपक द्वारा आरती
जिन मन्दिरों में जाकर अथवा गुरु के समक्ष जाकर, पंच परमेष्ठी से प्रार्थना कर अपने ब्रह्म-चक्र में ev ग्रहण करें और यह सुनिश्चित करके कि वह आपको प्राप्त हो रही है, उससे यह निवेदन करें (तीन बार) कि वह आपके लिए एक जलता हुआ दीपक तैयार करे। इसको अपने आज्ञा-चक्र में ग्रहण करके अपने सिर को भगवान/गुरु के समक्ष नवाते हुए विधिपूर्वक आरती करें, जैसे पंच परमेष्ठी की आरती “यह विधि मंगल आरति कीजे, पंच परम पद भज सुख लीजे .........", अथवा महावीर भगवान, पार्श्वनाथ भगवान अथवा उन गुरु आदि की कोई भी आरती करें। इस आरती का अनुपम आनन्द लें।
उक्त आनन्द को तिगुना करने के लिए ev से पुनः प्रार्थना करें कि वह आपको दो जलते हुए दीपक और तैयार करे। उन दीपकों को आप अपने दोनों आंखों में ग्रहण करें। फिर इस प्रकार तीनों ऊर्जा के दीपकों से आरती करें।
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