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________________ ! I संयम मार्गणा - अहिंसा आदि पांच महाव्रतों को धारण करना, ईर्ष्या आदि पांच समितियों का पालन करना, क्रोधादि कषायों का निग्रह करना, मन-वचन-काय की प्रवृत्ति रूप दण्डों का त्याग करना और स्पर्शनादि पांच इन्द्रियों को वश में करना संयम है। संयम शब्द की निष्पत्ति सम् उपसर्ग पूर्वक यम् उपरमे धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- अच्छी तरह से रोकना । करणानुयोग में मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषाय का अभाव होने पर तथा संज्वलन का उदय रहने पर संयम की प्राप्ति बतलाई है । दर्शन मार्गणा - क्षायोपशमिक ज्ञान के पूर्व और क्षायिक ज्ञान के साथ केवलियों में जो पदार्थ का सामान्य ग्रहण होता है उसे दर्शन कहते हैं । आचार्य योगीन्द्रदेव के अनुसार 'निजात्मनः तस्य दर्शनमवलोकन दर्शनमिति' अर्थात् निज आत्मा का देखना 'दर्शन' है। 'सत्तावलोकनं दर्शनम् सत्ता का अवलोकन ही दर्शन है । लेश्या - मार्गणा - जिसके द्वारा जीव अपने आपको पुण्य पाप से लिप्त करे, उसे लेश्या कहते हैं। यह लेश्या का निरुक्तार्थ है और कषाय के उदय से अनुरञ्जित योगों की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं, यह लेश्या शब्द का वाच्यार्थ है । लेश्या के द्रव्य और भाव की अपेक्षा दो भेद हैं। वर्ण नामकर्म के उदय से जो शरीर का रूप-रंग होता है, वह द्रव्य लेश्या है और क्रोधादि कषायों के निमित्त से परिणामों में जो कलुषितपने की हीनाधिकता है, वह भाव - लेश्या है । 1 भव्यत्त्व मार्गणा - जिस शक्ति के निमित्त से आत्मा में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र प्रकट होने की योग्यता होती है, उसे भव्यत्व मार्गणा कहते हैं। सम्यक्त्व मार्गणा - मोक्षमार्ग के प्रयोजनभूत तत्त्वों के यथार्थ श्रद्धान को सम्यक्त्व कहते हैं । संज्ञी मार्गणा - जो संज्ञा अर्थात् मनसहित हैं उन्हें संज्ञी कहते हैं । 'संज्ञा' हित और अहित की परीक्षा तथा गुण-दोष का विचार तथा स्मरणादि करने को संज्ञा कहते हैं । विग्रह गति में जीवों के मन नहीं होता है, लेकिन फिर भी गमन करते हैं। इस बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य उमास्वामी जी कहते हैं- 'विग्रहगतौ कर्मयोगः' विग्रहगति में कार्मणकाय योग होता है, उसी की सहायता से जीव एक गति से दूसरी १.९१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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