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________________ कायमार्गणा- जाति नाम कर्म के साथ अविनाभावी उस और स्थावर नाम कर्म के उदय से जो शरीर प्राप्त होता है उसे काय कहते हैं। आचार्य कहते हैं कि जिस प्रकार बोझा ढोने वाला मनुष्य काँवर के द्वारा बोझा ढोता है उसी प्रकार संसारी जीव कायरूपी काँवर के द्वारा कर्मरूपी बोझे को ढ़ोता है। योगमार्गण- पुदगलबियाको शरीर नाभकर्म के उदय से मन, वचन, काय से युक्त जीव की कर्म-नोकर्म के ग्रहण में कारणभूत जो शक्ति है उसे योग कहते हैं। यह भाव-योग का लक्षण है, इसके रहते हुए आत्म-प्रदेशों का जो परिस्पन्द हलनचलन होता है उसे द्रव्ययोग कहते हैं। वेद- प्राणी के नोकषाय के उदय से उत्पन्न हुये मैथुन करने के भाव को भाववेद कहते हैं और प्राणी के नाम कर्म के उदय से अविर्भूत दैहिक लिंग को द्रव्यवेद कहते हैं। भाव-वेद और द्रव्य- वेद में प्रायः समानता रहती है। परन्तु कर्मभूमिज मनुष्यों और तिर्यञ्चों के कहीं-कहीं विषमता भी पायी जाती है। नारकियों के मात्र नपुंसक वेद तथा देवों, भोगभूमिज मनुष्यों, तिर्यञ्चों के स्त्रीवेद तथा पुंवेद होते हैं। कर्मभूमिज मनुष्यों तथा तिर्यञ्चों के नाना जीवों की अपेक्षा तीनों वेद होते हैं। सम्मूर्छन जन्म वाले जीवों के नपुंसक वेद ही होता है। कषाय मार्गणा- कषाय शब्द की निष्पत्ति प्राकृत में कृष् और इण इन दो धातुओं से की गई है। कृष का अर्थ - 'जोतना' होता है। जो जीव के उस कर्म रूपी खेत को जोते जिसमें कि सुख-दुःख रूपी बहुत प्रकार का अनाज उत्पन्न होता है तथा संसार की जिसकी बड़ी लम्बी सीमा है, उसे कषाय कहते हैं। अथवा जो जीव के सम्यक्त्व, एकदेशचारित्र, सकलचारित्र और यथाख्यात चारित्र रूप परिणामों को कषै या घाते, उसे कषाय कहते हैं। शिलाभेद, पृथ्वीभेद, धूलिभेदि और जलराजि के समान क्रोध चार प्रकार का होता है। शैल, अस्थि, काष्ठ और वेत के समान चार प्रकार का मान होता है। वेणुमूल (बांस की जड़), मेढ़ा का सींग, गोमूत्र और खुरपी के समान चार प्रकार की माया होती है। कृमिराग, चक्रमल, शरीरमल और हरिद्रारंग के समान लोभ भी चार प्रकार का है। ज्ञानमार्गणा- आत्मा जिसके द्वारा त्रिकाल-विषयक द्रव्य, गुण और पर्यायों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जानता है उसे ज्ञान मार्गणा कहते हैं। १.९०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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