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(छ) यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के अधिक सम्पर्क में आते हैं जो अधिक बीमार हो
अथवा बीमार व्यक्ति के गले मिलते हों, तो वह अनजाने में आपसे स्वस्थ ऊर्जा ग्रहण करते हुए, अपनी रोगग्रस्त व दूषित ऊर्जा आपको देता है। पुनः स्वस्थता प्राप्त करने के लिए तीन ग्राम लहसुन का तेल (जिसमें नारंगी प्राण काफी मात्रा में होता है) अथवा दो ग्राम फूलों का पराग जो मधुमक्खी इकट्ठा करती हैं अथवा २०० मिलीग्राम चीनी जिन्सँग या कोरियायी लाल जिन्सँग (देखिए अध्याय ३२) अथवा ४०० से ८०० iu विटामिन E का सेवन करें। उचित भावनायें एवम् विचार (भावनात्मक और मानसिक स्वच्छता)Proper Emotions and Thoughts (Emotional and Mental Hygiene)
नकारात्मक भावनाओं एवम् विचारों से बचें। इसका विस्तृत वर्णन भाग ४ के अध्याय के ला में नर्मित है। इसलिए यहां दोहराया नहीं जा रहा है । यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कोई भी मनोरोग ठीक तो किया जा सकता है, किन्तु यदि भावनायें व विचार सही नहीं हैं, तो वह पुनः हो सकता है और उसका स्थायी उपचार सम्भव नहीं होता।
सकारात्मक भावनायें दया, करुणा आदि भायें तथा प्रसन्नचित्त रहें। यदि आप अध्यात्मिक क्षेत्रों में उन्नत गुणी व्यक्तियों जैसे साधु व त्यागी व्रतियों के संसर्ग में रहें, तो यह आपके शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक एवम् आत्मिक स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त लाभप्रद रहेगा। (E) क्षमा और करुणा- Forgiveness and Kindness ... सदैव इनका जीवन में पालन करें। अनेक रोग जिनके मूल में क्रोध व हिंसा होते हैं, वह स्वयमेव ही ठीक हो जाएंगे और आप हर प्रकार से स्वस्थ रहकर आध्यात्मक के क्षेत्र में उन्नति कर सकेंगे। (६) उचित मानवीय सम्बन्ध- Proper Human Relationship
मनुष्यों एवम् पशुओं/ अन्य जीवों के प्रति क्रूरता गम्भीर रोगों का कारण बनती है। जैसा आप बोएंगे, वैसा पाएंगे। कर्म का नियम अटल है। नकारात्मक कर्मों का फल अशुभ व दुःखमयी ही होगा। इनसे बचें।
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