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रक्तचाप हो सकता है। वायवी फेंफड़े एवम् 7b बहुत अधिक गंदे होते हैं और उन पर कुप्रभाव पड़ता है। 7f गंदे 70 से घनिष्ठता पूर्वक सम्बन्धित होता
है, जो हृदय को प्रभावित करता है। (ख) मद्यपान से बचें- इससे समस्त वायवी शरीर गंदा और भद्दा हो जाता है।
इनसे वायवी शरीर को क्षति पहुंचती है, जिससे व्यक्ति को अनेक प्रकार के मनोरोग होने की तीव्र आशंका रहती है। ऐसे स्थान में न रहें, जहां वायवी ऊर्जा गंदी हो। ऐसे स्थानों में दिव्य दर्शन से देखा गया है कि भूमि से आने वाली ऊजां हल्के भूरे से रंग की होती है। यदि किसी कूड़े के स्थान का भूमि उद्धार (reclairmation) किया गया है तो वह क्षेत्र वायवी तौर पर गंदा व दूषित होता है। इसी प्रकार कुछ स्थान जैसे अस्पताल, श्मसान भूमि, कब्रिस्तान आदि भी वायवी तौर पर काफी गंदे होते हैं। ऐसे
स्थानों में होने के पश्चात पानी-नमक से स्नान कर लेना चाहिए। (घ) यदि कोई कमरा लम्बे समय तक किसी रोगी द्वारा इस्तेमाल किया गया है, तो
वह रोगग्रस्त ऊर्जा से भर जाता है। इस प्रकार के कमरों की सफाई पानी और नमक के इस्तेमाल से, अथवा चन्दन की धूप, अगरबत्तियां जलाकर, अथवा प्रार्थना द्वारा, अथवा सूर्य की रोशनी द्वारा, अथवा आगे अध्याय ३६ के
क्रम ३ पर वर्णित विधि द्वारा की जा सकती है। (ङ) वस्तुओं के आदान-प्रदान से भी वायवी गंदगी हो सकती है। जो व्यक्ति जिस
वस्तु का उपयोग करता है, उसके वायवी शरीर के ऊर्जा के अंश उस वस्तु में प्रवेश कर जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति गंदी, वायवी शरीर वाला है, तो उसके द्वारा उपयोग में लायी गई वस्तुएं गंदी ऊर्जा से आंशिक अथवा पूर्णरूपेण भर जाती है। यदि यह साधारण नियम बना लें कि न तो किसी दूसरे की वस्तु उधार लें और न दें, तो इससे बचा जा सकता है। यदि आवश्यक हो, तो
उपक्रम (घ) में वर्णित विधि द्वारा ऐसे वस्तुओं को स्वच्छ किया जा सकता है। (च) जब आप कोई पुरानी (second hand) वस्तु, विशेष तौर पर आभूषण ___(jewellery) क्रय अथवा ग्रहण करते हैं, तो जिन हाथों से वह गुजरी हुई होती है, उनके ऊर्जा के अंश उसमें विद्यमान होते हैं। अतएव, इनकी सफाई आवश्यक है- इसकी विधि अध्याय २६ के क्रम (क) में दी गयी है।
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