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इस उच्चारण को एक बार या अनेक बार किया जाता है। रोगियों को मानसिक या मौखिक रूप से उपचार की ग्रहणशीलता की स्वीकृति को उच्चारित करके सहयोग प्रदान करना चाहिए। (नोट- निदेशित उपचार का कथन अध्याय २६ में वर्णित है)
दिव्य दर्शन से देखा गया है कि उक्त दशा में, उपचारक दिव्य उपचारी ऊर्जा को रोगी को प्रेषित कर रहा होता है, चाहे रोगी को इस बार की
संज्ञानता हो या न हो। (१२) धार्मिक संस्कारित पवित्र पदार्थ के माध्यम से उपचार--
Eucharistic (यूकैरिस्टिक) Healing यह उपचार वास्तविक रूप में अत्यन्त पवित्र होता है। जब इस कार्य के योग्य किसी पदार्थ का पवित्रीकरण (consecration) किया जाता है, तो बहुत अत्यधिक मात्रा में दिव्य ऊर्जा चमकदार विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा के रूप में आती है। इससे वे पदार्थ छोटे-छोटे ज्वाला निकलते हुए 'सूर्यों में परिवर्तित हो जाते हैं। इस उपचार के लिए व्यक्ति को बहुत अधिक आध्यात्मिक रूप से उन्नत एवम् उच्च आत्मोन्नत होना आवश्यक है।
जब पवित्र पदार्थ को समुचित संज्ञान, भक्ति और कृतज्ञता पूर्वक ग्रहण किया जाता है, तो रोगी का दिव्य मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक उपचार होता है। यह परामर्श दिया जाता है कि रोगी मानसिक रूप से शांतिपूर्वक उपचार की ग्रहणशीलता की स्वीकृति और उसके लिए धन्यवाद करे, "हे प्रभु, मैं दिव्य आशीर्वाद और दिव्य उपचार को पूर्णतया स्वीकार करता हूं। मैं मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से तेरी दिव्य उपचारी ऊर्जा को स्वीकार करता हूं। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।" इस प्रार्थना को तीन बार दोहराइए, फिर अन्दर से शान्तचित्त रहिए। आन्तरिक रूप जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति चौकन्ने रहिए। कुछ केसों में, रोगी अपने शरीर के अन्दर प्रकाश को भरे हुए देखेगा और दिव्य परमानन्द, दिव्य विभोरता और दिव्य प्रकाश का अनुभव करेगा। गम्भीर केसों में जब तक आवश्यक्ता हो, रोगी सप्ताह में तीन या अधिक बार करे। इस प्रकार के उपचार से भौतिक और