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________________ ७८ अध्यात्म बारहखड़ी किरिया तेरी परणति नाथा, क्रियावंत तू अति गुण साथा। तू हि किसोर सदैव जिनेसा, दिन दूलह जगपति जति भेसा ।। ४८ ।। तू किसोर वय कवहू नाही, अति जूनौं जोगी जगमाही । किलविष कलमष तँ त न्यारा, तू कित हू नहि रक्त जु प्यारा ।। ४९ ।। किल कहिये निश्चै करि देवा, देहु आपुनी पूरन सेवा । किन हूं नैं तू कीनां नाही, देव अकर्तृम है सव माही॥५०॥ कियो किराव (मैं इह स्वामी, विषयनि राचि भज्यौ नहि नामी! धन्य किरात हु जो गुन गांवें, धिग विप्रा जो लव नहि लावै॥५१॥ कीट पतंगादिक जे जीवा, सव को रक्षक तू जगदीवा। कीट कालिमा तेरै नाही, कीरति तेरी सब जग माही॥५२ ।। तू हो कीमिया रूप भुनिंदा, संसारी कौं सिद्ध करंदा । गुण कीर्तन तेरौउ धारै, कीच रूप भवतै निज तारें ।। ५३ ।। कील रूप जो माया सल्ली, सो तेरे नाही भव वल्ली। ते जग मांहि वालमति कीका, जिनहि विसारयौ तू जगटीका ।।५४।। कीर जु सुवा कीर जु कीरा, तोहि जु ध्या ते जग धीरा। नीच ऊंच अंतर नहि कोई, तोकौं भजे सु, तेरा होई ।। ५५ ॥ कुसलमती तू त्रिभुवन पीवा, कुकथा खंडन तू जगदीवा । कुनय विहंडन सुनय प्रकासा, तू कुकर्म टार विधि भासा ॥५६॥ कुत्सित मारग दूरि करेवा, कुगति कुमति नासै तू देवा । तू कुवेरपति कुसल करंदा, कुमदचंद्र तेरौ जगचंदा ।। ५७।। कुसमायुध नासक तू सूरा, कुटिलभाव कुटिलाई दूरा। कुरजांगल आदिक वहु देसा, सब देसनि को नाथ महेसा ।। ५८ ॥ कुगुर कुदेव कुधर्म निवारा, कुलकर पूजित अतिकुल तारा। कुचलन धार कुपात्र न पावै, मूढ कुभेष धारि नहि भावें ।। ५९॥ कुलाचार ते तू प्रभु न्यारा, तू कुकीर्ति रहिता जग प्यारा । कुल कोडि जु जीवनि के देवा, तु ही प्रकास अकुल अभेवा ॥६०॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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