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अध्यात्म बारहखड़ी
रूलिउ जु भव मैं जन्म गहे जु अनेक,
अव तारि जु भव जल तैं देहु विवेक। तो धनु काम उतारइ भवजल नाथ,
इकतारक तू सुनिउ जु अति वडहाथ ।। ९ ।।
- दोहा -
रमा शक्ति चिद्रूपता, निज सत्ता है सोय। विद्या भूति सुसंपदा, संपति दौलति होय ॥१०॥
इति अः वर्णनं । आमैं एक कवित्त मैं षोडसाक्षर का निरूपण करै है।
- सवैया - ३१ -
अमल अनादि देव आदिनाथ इष्ट सेव
ईश्वर उधारक है ऊरध निवास तू, ऋषि गण ध्याबैं तोहि ऋ ल ल विभासक तू
एक सरवज्ञ सव एन को विनास तू, ऐश्वरतापूर तू ही ऐरावतपति ईश,
ओज पुंज ज्ञान कुंज औषधी प्रकाश तू, औपाधिक भावनि मैं एक नाहि तेरै कोऊ
__ अंगना न अंग संग अ: प्रभु विलास तू॥६॥ इति श्री भक्त्याक्षर माला बावनी स्तवन अध्यातम बारह खड़ी नाम ध्येय उपासना तंत्रे सहस्त्रनाम एकाक्षरी नाम मालाद्यनेक ग्रंथानुसारेण भगवद्भ जनानंदाधिकारे आनंदोद्भव दौलतिरामेन अल्पबुद्धिना उपायनी कृतेसुर निरूपणो नाम प्रथम परिच्छेद ॥१॥ अथानंतर ककार का व्याख्यान करै है॥६॥