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________________ अध्यात्म बारहखड़ी - लोक - कलानिधिं कलातीतं. कामटं कामघातक। ...... किंनाकघ्नं शिवाधारं, कीट कुंथ्वादि रक्षकं ॥१॥ कुमार्ग परिहंतारं, कूट पाखंड वर्जितं । केवल कैतवातीतं, कोप कौटिल्य नाशकं ॥२॥ कंकारं कर्म भेत्तारं, कंप कांक्षादि वर्जितं । वंदे लोकेश्वरं देवं, का स्वष्टारमतीश्वरं ॥३॥ __- त्रोटक छंद - करमामय भैषज रूप तु ही, तम झूठ विनासक भानु सही। दुख नाहि जु पांवहि जेहि भनँ, करमा वहु वांधहि जेहि त ।।४।। कलपा अति वीति गये अतुला, कलपा पति नाथ तु ही अचला। कबहू नहि तू हि विभाव गहै, जु कदापि न नाथ अभाघ लहै।।५।। भगता कलकंठ जु तू हि मधु, कल है जु कलाधर तू रज धू। भगता जु कलायर तू जलदो, भवि हैं कमला रवि तू फलदो ॥६॥ भगता जु कमोदिनि तू हि ससी, तुव जोति महा उर मांहि वसी। कहु कौंन प्रकार मिले प्रभु तू, वह भासह भेद महाप्रभु तू ॥७॥ करुणाकर कोप विदारक तू, कमलासन आसन धारक तू। कलपित्त लपै नहि तू हि प्रभू, नहि धारहि दोस कदाचि स्वभू॥८॥ नहि हैं जु कलाप अभावनि के, प्रभु है जु प्रताप स्वभावनि के। तुव है जु कल्याण स्वरूप प्रभु, परमा जु कल्याणक धार विभू।।९।। - छंद पद्धडी - कल्याणदेव कल्यापाराय, कल्याण सर्व लागे जु पाय । कल्याण नाम तेरौ न और, धारै जु दास हूँ लोक मोर ॥१०॥ इह कलिय काल माहे जु मूढ, तुव तत्त्व त्यागि सेवैहि रूढ़। कण रूप तूहि तुष मिलित और, कण गहहि साधु करि कर्म चौर।। ११॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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