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अध्यात्म बारहखड़ी
- शांक -- ऐकारं परमं देवं, सर्वाक्षर निरूपकं । वंदे देवेंद्र वृन्दाऱ्या, परमं पुरषोत्तमं ॥१॥
- दोहा -- ऐ कहिये सिद्धांत मैं, नाम महेश्वर देव । तुम ही ईश महेस हाँ, और न दजो भेद ।। २!! ऐक्य रूप ऐश्वर्य धर, ऐक्य सुभाव अनूप । ऐक्य नैक्य अव्यक्त तू, अति ऐश्वर्य स्वरूप॥३॥ ऐहिक फल मांगू नहीं, परभव भोग न चाहुँ। नि:कामा भक्ती चहूं, तुष भजि कर्म नसाहुं ।। ४॥
___-- छंद पद्धडी -- ऐश्वर्य मूल ऐश्वर्य दाय, ऐरावताधिपत्ति परहि पाय। ऐश्वर्य मोह कौ सर्व नासि, भासे सुतत्व आनंद रासि ।।५।। ऐश्वर्यपार ऐश्वर्यसार, ऐश्वर्यभार आश्चर्य धार। परमैश्वरय्य परतक्ष देव, देवाधिदेव लोकेस एव॥६॥ ऐरावतादि भरतादि, सर्वक्षेत्राधिपो हि, तू विगत गर्व। ध्यावै जु ऐलविल तोहि श्रीस, देवो जु ऐलविरल द्रव्य ईश॥७॥ यक्षाधिपो जु कहिये कुवेर, देविंद्र कोसधारी घनेर । देवेंद्र एलविल सर्व तोहि, ध्यावें जु तारि भव जु मोहि ॥८॥
- छंद गौत! - ऐक्य रूपा नैक्य रूपा पर्म रूपा रूप तृ। धर्म रूपा है अनूपा अति निकूपा भूप तू ॥ ९ ॥ ऐश्वर्यभागी अति विरागी परम भागी नाथ तू। अति संग त्यागी वहिरभागी वस्तु लेय न साथ तू॥१०॥ ऐश्वर्यवासा अति उदासा कर्मनासा देव तू। हे आसवासा तारि दासा दै अनासा सेव तू ॥११॥