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________________ अध्यात्म बारहखड़ी एनानिवारि मनु धीर धर्म, करि हैं प्रगट्ट तेरौं हि मर्म । एकांवना जु कोड़ी हि अष्ट लक्षा सहस चउरासि मिष्ट ॥३४॥ छसै जु सत्तवीसा सिलोक, ए एक ही जु पद के सथोक। एद एक सौ जु वाराह कोडि, लक्षा तियासि आधिक्य जोड़ि।। ३५ ।। ए अट्ठवन्न सहसा बहोरि, पंचाधिका जु सहु पद्द जोरि । भारी जु तूहि धारै मुनिंद, गांवें सुकित्ति नागिंद इंद ।। ३६ ॥ ए एकसट्ठि दूणा जु लेय, एक सौं जु बाइस हेय । प्रक्रति जु नाथ उदया सवै हि, मोते जु टारि तोते दवै हि॥३७॥ - सोरठा - एकहतरि परि एक, अधिक भयें वहतरि कला। सकल कला अविवेक, जौ तोकौं ध्यावै नही ॥३८ ।। एक्यासी चउरासी असी पच्यासी लगि रहै। तेरम ठाण अपासि, जरी जेवरी सी अवल ॥ ३९॥ ए सहु प्रक्रति चूरि, पावै तेरौ निज पुरा। तू है एक प्रभूरि, एकानव भी है सही।। ४० ।। एकोत्तर सौ पूत, ऋषभदेव के शिव भये । तोकौं जपि अवधूत, तू हैं शिव कारन सही॥४१॥ एक सहस परि अष्ट, लक्षन अर नामा प्रभू । तेरे जड़ें जु शिष्ट, अमित नाम गुण अमित तू। ४२ ।। एष एव परसिद्ध, सव मैं तू राजै सदा। प्रगट होहु गुणवृद्ध, शुद्ध दसा करि दास की॥ ४३ ।। ए ही तोते नाथ, मांगू और न एक है। तू छुड़ाय वडहाथ, कर्म पासि तैं मोहि हूं। ४४॥ एक एकता देव, तेरी सो कमला रमा। श्री पदमा जु अछेव, धन दौलति सोई सही॥ ४५ ।। इति एकार संपूर्ण । आर्गे ऐकार का व्याख्यान करै है।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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