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अध्यात्म बारहखड़ी
एन नासिवे कारन पुन्या, धरै विवेकी दास जु धन्या। पुन्य पाप से रहित जु होई, आवै तुब पुरि भ्रांति जु खोई।।२१।। एन भे; सह मुख्य जु हिंसा, पु, मेद बहु मुख्य हिंसा। एण कहावै मृग पशु जीवा, मृग मारें तैं पाप अतीवा ॥ २२ ॥ एडक कहियै पुत्र अजा को, निरबल जाकौं बल नहि काको। तिनके हतें जु करुणा नासै, करुणा विनु नहि भक्ति प्रकास।। २३॥ ए मारै ते नरक जावें, मांस भक्षं ते अति दुख पावें। मद्य मांस सम और न निद्या, करुणा सम और न जग बंद्या ॥२४॥ एण नेत्र सम नारी नेत्रा, लखिकरि डिगैं न इंद्री जेत्रा। तेही द्रिढ भक्ती तुव पांवें, एन समस्त जु तेहि नसावै ।। २५ ॥ एणांक जु सेवै तुव पाया, नाम चन्द्रमा इहै बताया। तू त्रिभुवन कौ चंद अनंदा, चंदहु को तू चंद मुनिंदा ।।२६ ।। एक पक्ष धार नहीं कोई, नित्यानित्य कथक तू होई। प्रभु एकांतवास एकत्वा, सदा एकता रूप सुतत्वा ।। २७ ।। एक वाद नहि तेरै पैए, द्वय वादी अविवाद वतैए। तू एकत्व तंत्र नैकत्वा, अदभुत गति तेरी अतिसत्वा ।। २८ ॥
-. छंद पद्धडी - एकत्व गम्य एकत्त्व लीन, एकत्व सार शुद्धत्व चीन। एकांतवास धारै मुनिंद, ते तोहि एक ध्यावै जिनिंद ॥२९॥ एकिंद्रियादि जीवा अनंत, एको दयाल तू ही जु कंत। एतत्स्वरूप भवतारि मोहि, रुद्रा जु एकदस जपहि तोहि ॥ ३० ॥ एकादस जु पडिमा सुसार, श्रावक धर्म भासै अपार । एकाधिवीस लक्ष्या जु आदि, गुन सर्व तू हि भास अनादि ।।३१।। एकाधितीस उदधी सुआयु, नौग्रीव जाय पार्दै सुकाय। तप धारि वार केई जु जीव, सुर लोक मांहि पहुंचैं अतीव ॥३२॥ एको सुसिद्धि पथ तू हि देव, विनु सेव जन्म धारै अछेव । एकाधिचालिसा सहस वर्ष, कलपांत काल पीछे सहर्ष ।। ३३ ॥