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अध्यात्म बारहखड़ी
- भोक - लकाराक्षर धातारं, दातारं सर्व संपदां। नेतारं मोक्षमार्गस्य, वंदे देवं सदोदयं ।।१।।
- दोहा - ल कहिये अहि मात कौ, नाम सुग्रंथनि माहि। अहि दुर्जन ए कर्म हैं, विष भरिया सक नाहि ।। २ ।। इन नागनि की मात प्रभु, नागिनि माया होय । कहैं अविद्या मुनि गणा, जाको नाम जु सोय।। ३॥ हरै मुनी माया महा, हरै कर्म को दंड। हरै गहलता रूप विष, जपि तुब नाम सुअंक ॥ ४॥ मंत्र गारडु नाम इह, तेरौ दीन दयाल। सो हमकौं दै अमृता, हरि माया विष लाल ॥५॥ अहि नागा जे देवता, नागेंदर इत्यादि। देव दैत्य खेचर नरा, तिर नारक सव वादि ।।६।। जो सुर जोंनि सुमात है, सव देवनि की एह। नाग मात ही सो सही, हम न चहैं सुर देह ॥७॥ नाग नाम गज को सही, ताकी हथनी मात। हस्ति हस्तिनी आदि कछु, दास न चाहैं तात ।। ८ ।। नाग नाम है साप कौ, ताकी नागिनि मात । तातें अधिक सुदुष्टता, सो हरि जगत विख्यात ॥९॥ नागिनि मरन जु एकभव, करै अधिक नहि दोष। इह दुरजनता भव भवै, कर अधिक तन सोष ।। १०॥ जब तू आवै घट विषै, नागिनि को नहि वास । तू गरूडध्वज देव है, सर्व पिशुनता नास॥११ ।। नाग नाम सीसा सही, ताकी जननी खांनि। नागादिक सब धातु की, खानि न मांगौं दांनि ।।१२।।