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अध्यात्म बारहखड़ी
अनुभै मूल सचूल तू ऋते छद्म अर सद्म। ऋते परिग्रह भिन्नतें पद्मा रूप सुपद्य। पद्मा रूप सुपद्म खेद खिन्नो नहि कव ही। ऋते पुन्य अर पाप ताप जाकै नहि सव ही। जाकै नहीं उपाधि नहीं असमाधि नही भै। ऋते जु रामा राम नाथ राजै सुख अनुभै ॥२७ ।। टीको जग को रावर, सोहै देव ललाट । ऋते नाम अर गांम तू, धांम रूप उदघाट । धांम रूप उदघाट ठाट को नायक तू ही। पाट धार शिववाट एक परवर्त्त प्रभू ही। तर नहि गुनथांन नही परमाणु गनी। ऋते काल जगजाल धीर धारयां जग टीकौ ॥ २८॥
- दोहा - ऋवरण सुरमाता कही, तुब श्रुति अर तुव भक्ति। तू श्रीधर श्री रूप है, अति दौलति अति शक्ति॥२९।। इति ऋकार वर्णनं। आगै ऋ वर्ण का वर्णन करै है।
- भोक - ऋकाराक्षर कर्तार, भेत्तारं कर्म भूभृतां । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वंदे देवं सदोदयं ॥१॥
- दोहा - ऋकारो आगम विषै दैत्य पात को नाम । दैत्यां मोहादिक महा, रागादिक दुख धाम ।। २ ।। तिनकी माता भ्रांति है, महा अविद्या रूप। इह दैत्यां वा ए असुर, लागि रहे जु विरूप॥३॥ तुव प्रताप निज दास जे, हरै भ्रांति मोहादि। भ्रांति हरन मोहादि रिपु, तातें तुम जु अनादि॥४॥