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________________ ५२ अध्यात्म बारहखड़ी इह माया दुखदाया भव भव देव, विरवै सौं भल करहि न कबहु अछेख । तपिउ ताप दुखया करि हौं अति ईस, तप ऋतु सम इह माया दाह करीस ।। १५ ।। झर लांवन अमृत की तू अति मेह, ज्ञानांकुर तो विनु को करई परम सनेह । भव्य सिखंडी हरषहि सुनि तुव गाज, तपति हरन तू प्रभुजी अधिक समाज ।। १६ ।। वरषा ऋतु जित सरस जु तुम्हरी सेव दै जिनराय अधांस अनादि अछेव । ऋतु जु सरदसम उज्जल केवल बोध, तुव किरपा तैं लहिये परम प्रबोध ॥ १७ ॥ ससिर समानो जडताभाव सुमोहि, लगिउजु चिरतें हरि प्रभु बुधिहर सोहि । दिनकर सम तू हरि प्रभु जडता भाव, दै निजबोध प्रबोध मिटाय विभाव ॥ १८ ॥ हिम ऋतु सम इह सठता मोतैं दारि, दें परवीन स्वभाव भवोदधि तारि । ऋतुषट भासक ऋतुरति जीतक देव, ऋतुराजो ऋषिराजो तू जु अछेव ॥ १९ ॥ ऋषि व मिलि करि लिखिया तू इकतत्त्व, ऋषि नरपतिया जतिया तू अति सत्व । ऋणनासक ऋणवीत तु ही रणजीत, ऋषिक न तोसौ जग मैं और अजीत ॥ २० ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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