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अध्यात्म बारहखड़ी
उल्लंघक है तू उदधि लोक, उपरोध नहीं तू है असोक । तर न उपाश्रय कोई नाथ, उत्साहमई जतिनाथ साथ॥२८॥ उत्तमता तो सम कौन धार, तू उग्रोग्न जु जगदेव सार। उर उग्रतपा मुनिराय धौर, उर अंतर धारहि तोहि वीर ।। २९ ।। उतपल दल लोचन अति विसाल, उपचारी तू अति ही रसाल।
उपचार न तो सम और कोई, जर मरण जनम मेटै जु सोय॥३०॥ .. इला शुम आदि सबै जुर्ग लोही करि प्रगटहि तू अभर्म। प्रतिमा जु उपल अर धातु रूप, तेरी जु वनांवहि अति सुरूप ।।३१॥ उपकर्ण न तेरहि कोई होइ, उपयोग भाव उपकर्ण सोइ। उरहार तू हि उरझार दूर, तू नाहिं उपद्रित कर्म चूर॥ ३२॥ उपलभ्य तू हि उपलभ रूप, उपदेसी तू सव देस भूप । उद्यांनयास ऋषि करहि धीर, तोकौं इकंत ध्यावें सुवीर ।। ३३ ।। उदवास वास करि धरि उपास, अति रमहि तो महँ परमदास। उपवन वन गिरि सरिता सुगांम, पुर देस मांहि तू ही सुनाम ।। ३४ ।। उतपात सकल होबैं निपात, भूकंप उल्कपातादि जात। उदधी समान उर अति अथग्ग, तेरौ मुनि गांवहि सुमग लग्ग॥ ३५ ॥ उपजी सुबांनि ता मांहि देव, अमृत समान अदभुत अछेव । ताकौं सुपीय बहु जीव लोक, हुये अमृत्यु आनंद थोक ॥३६ ।।
- छंद वेसरी ... तेरी वांनी अमृत अर्था, और सुधारस कहिये विर्था । अमरा नाम देवगति जीवा, मरण करें दुख लहै अतीव ।। ३७ ।। अमरा कहिवे के जु मुधा ही, तैसौ वन की पान सुधा ही। चलती कौं गाडी जन जानें, मरतौं कौं अमराकरि मां ।। ३८ ।। नहि अमरा न सुधा सो जांनी, तू अमरा अमृत तुब वानी। उर वसि हमरै उरहर देवा, करौं उरवसि तेरी सेवा ।। ३९॥ अवर उरवसी रंभा नामा, वहुरि तिलोतमादि अभिरांमा। नही अपछरा नहि सुर लोका, चाहौँ तेरी भक्ति अस्लोका ।। ४०।।