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________________ ४४ अध्यात्म बारहखड़ी उद्भध तेरौ जगत मैं, होय कभी न दयाल । उन्मूलित कर्मा तु ही, रहित उपद्रव लाल ॥ ३ ॥ उद्भट उद्भव तू सही, दोष उच्छिन्न उदार। उर्वी नाम जु भूमि कौ, तू उवीं मैं सार ॥४॥ उदयंकर प्रभु उर प्रवल, उदय अस्त तें दूर । उपलब्धातम देव तू, उपलब्धो भारपूर ॥५॥ उदित उधारक उपशमी, उद्धत बोध प्रचंड । उद्यत उद्यम रूप तू, उपसमीप गुणमंड ॥६॥ उपवासी उपशांत तूं, उपयोगी उपयोग। उपधि रहित उतपथि रहित, विनु उपाधि अतिभोग।।७॥ उपभोगा भोगा नही, जोगा एक मिलै न। उद्धरणो उद्धार तू, जडता मांहि भिलै न॥८॥ उचित उपेंद्र उपायमय, उज्जल परम उदात। उपकारी उपकारमय, उपमा अतुल सुतात ॥९॥ उपमारहित उपेय तू, नाम उपाय न भेट। भेट करें तन मन मुनी, उपदिष्टा जु अमेट ॥१०॥ उपदिश्यो उपदेश तू, उपरम रूप अनूप । तू उपमेय अमेय है, सकल उर्वराभूप॥११॥ उत्तम उर तेजस महा, आनंदी जु उदास । उरि वसि नाथ सुदासकै, अहनिसि सास उसास ।। १२ ।। उच्चिष्टा विषया सवै, इंद्रियनि के परपंच । भुगते जगवासीनि नैं, नहि चाहौं अघसंच ।। १३॥ उभय नाम है दोय की, राग दोष ए दोय । मेटि दोय दै दास कौं, दरसन ज्ञान सुजोय ॥१४॥ उपशम क्षपक जु, श्रेणी है, सव भासै तू देव। तू उत्तंग अभंग है, विनु उनमाद अछेव ॥१५ ।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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