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________________ अध्यात्म चारहखड़ी धारै दासा समिती, ईठ करें तोहि त्यागी परपंचा। जिनकै घट नहि कुमति, ईदा (र्ष्या) पीडा नही रंचा ॥ १२ ॥ दोहा ईट नांव है मित्र काँ, भाषा में एक नांहि । मित्र न तोसौ दूसरी, तीन लोक के मांहि ॥ १३ ॥ ईख रसादिक मिष्ट नहि, मिष्ट इष्ट तुव नांम । नांम रसायन जे पीवें, अमर होंहि अभिराम ॥ १४ ॥ ईस बल्लभा ईश अर, तोकौं ध्यावैं नाथ । तू ईशेश अलेश हैं, गुण अनंत तुव साथ ॥ १५ ॥ छंद मोती दांम नही जगि ईश्वर तो बिनु कोय, हितू सवकौ प्रभू तू इक होय । प्रभू परमेश्वर तू जु मुनीश, अनीश्वर श्रीश्वर तू अवनीश ।। १६ ।। तु ही शिवसागर नागर धीश, तु ही जु निरीश्वर ईश्वर धीश | तु ही प्रभु ईश्वरतापति नाथ, अनादि अनंत अछेव असाथ ॥ १७ ॥ तु ही जड़ता हर दोष वितीत, प्रभू निज ज्ञान स्वरूप अभीत। तु ही जगतात महा सुखदात, महा अघ घातक देव विख्यात ।। १८ ।। सोरठा ई लक्ष्मी कौ नांम, लक्ष्मी धर तू शिवपती । और न दौलति कांम, दौलति दै अविनश्वरी ॥ १९ ॥ — ४३ ― इति ईकाराक्षर संपूर्णं । आगे उकार का व्याख्यान करें हैं। शोक - उकाराक्षं वंदे सदा महादेवं शंकरं भुवन शिवाधीश, कहैं उकार सुपंडिता, शंकर सुर कौ नांम । सुखकारी आनंदकर, तू जितवर गुणधाम ॥ २ ॥ त्रये । नित्यभानंदमंदिरं ॥ १ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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