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अध्यात्म बारहखड़ी
आदि दौलति रावर ही तोहि तैं दौलनि लहैं । भुक्ति मुक्ति सुमूल तू ही, चरन शरण तेरी गहैं ॥१७१ ॥ इति आकार अक्षर वर्णनं । आगैं इकार का व्याख्यान कर हैं।
- शेक - इंद्र नागेंद्र चक्रीणा, मीश्वरं जगदीश्वरं । . . . वंदे सर्व विभूतिनां दायकं मुक्ति नायकं ॥१॥
- दोहा - इ है इकार सिधंत मैं, प्रगट काम को नाम | तुम जु काम हर कामपति, काम सुधारक राम ॥२॥ इंदीवर कहिये कमल, कमल कहा 'कमनीय ।
जैसे तेरे चरन हैं, तू अनंत रमनीय ।।३।। • इंदीवर न सुगंध है, तन तेरौ ही सुगंध । इंद्री प्रेरक मन इहै, तोहि न ध्यावं अंध।।४।। इंद्री प्रेरक चित्त सौं, भव्य कहै भजि नाथ । संग त्याग इंद्रीनि को, करि जिनघर को साथ।।५।। इंद्रीधर ए जीव हैं, पीब न इंद्री रूप। शुद्ध अतिंद्री देव है, भजि मन सो चिद्रूप ।। ६ ।। इंद्रपति अर इंदुपति, इंदु कहावै चंद । चंद चकोर जु है रहै, निरखत बदन मुनिंद।।७।। इभ हस्ती को नाम है, इभ न लहै वह चाल। हंस चाल गज चालते, जाकी चाल विशाल ॥८॥ कर्मरूप इभगनि कौं, इभ रिपु केहरि सोय । अमित पराक्रम नर हरी, सो भजि सुमनां होय॥९॥ इंद्र तीन हूँ लोक कौ, इंद्र हू को प्रभु इंद्र। इंद्राणी अर इंद्र कौं, जीवन मूल मुनिंद्र ॥१०॥ इषु इह नाम सुवांन कौं, जाकै बान न चाप। ज्ञान चाप ब्रत बांन धर, नासै अखिल जु पाप ।। ११ ।।