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________________ अध्यात्म बारहखड़ी ३५ - गाथा छंद - आशापासि निकंदा, संतोषी तू महासुखी धीरा। आनंदा जिनचंदा, करि आनंदी महावीरा ॥ १३४॥ आसा पूरै सवकी, तेरे आसा न तू हि निहकामी। आस पिसाची कवकी, मोहि लगी टारिं जग स्वामी॥ १३५ ।। आसा राखौँ तेरी, धरौं न आसा कदापि घर घर की। करि जैसी बुधि मेरी, करुना पालौं हि थिरचर की॥१३६ ।। आसा मेटि हमारी, करौं ने आसा कदापि सुर नर की। सुनि के वानि तिहारी, परनति जानी हि निज पर की। १३७॥ आतमरस दै देवा, आसक संगा : हो जिन : : आतम ज्ञान सु सेवा, विनु नहि पायो किनी ईसा॥१३८ ।। आतम ज्ञान प्रकासी, तृ. ही ध्यानी सु आतमा रामा । आतम लोक विभासी, आतम गुण भर महा धामा ।। १३९ ।। आरति हरणा तू ही, आपद हरणा सुसंपदा दाता। संपति गुण जु समूही, भक्ति तेरी सुविख्याता ॥ १४०॥ आपद भुगतें सकला, सुर नर तिरजंच नारकी जीवा। तू ही श्रीधर कमला, अटला थारै अनंतीवा॥१४१ ।। आतम चित्त जु धारा, आंवरमाना अमानमाना तू। आरति रौद्र निवारा, भगवाना शुद्ध ज्ञाना तू।। १४२॥ आर्जव धर्म प्रकासा, आपा पर भासका तु ही नाथा। आज्ञा पालैं दासा, तेहि तिरै सीध्र भुव पाथा ।। १४३ ।। आज्ञा दायक शुद्धा, आगम प्रगटा सुआगमी नामी। अध्यातममय बुद्धा, आदेसक तत्त्व का स्वामी ।। १४४ ।। आदेस न काहू का, तोकौं तू ही स्वयं गुरु देवा। तू तारक साधू का, आगमधर धारइ सेवा।।१४५ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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