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अध्यात्म बारहखड़ी
– सर्वया - असिमसि कृषि और वांनिज को, नाम कोऊ
नाहि तेरे पुर मैं न शिल्प पशु पालनां। पठन न पाठन है शिक्ष गुरभेद नांहि,
स्वामि अर सेवक को भेद न निहाल नां। तू तो प्रभु एक रूप ज्ञान रूप भाव तेरौ
तेरौं पुर चैंन रूप जहां बस काल नां। मोह नाहि द्रोह नाहि नाहि जु विभाव कोऊ,
जहां तू विराजे देव सवै भ्रम जाल नां॥११५॥
_ - सोरठा - अध्यातम को मूल, भजै तोहि अध्यातमी। मेट हमारी भूल, दै आतम अनुभव सही॥११६ ।। तू ही अकार स्वरूप, सकल वर्ण मात्रा तु ही।
परमेश्वर जगभूप, दौलति करन जु तू उही॥११७ ।। इति अकार स्वर संपूर्ण । आ- आकार का व्याख्यान कर है ।। श्री ।।
- भोक - आदि देवं युगाधारं, मात्माराम पितामहं। वंदे साकार रूपं च, निराकारं निरंजनं ।। ११८॥
- सारठा -
आ कहिये श्रुति मांहि, नाम पितामह को सही । तो विनू दुजौ नाहि, तू ही लोक पिता महा ।।११९॥ आशु शीघ्र को नाम, शीघ्र उधारौ जगत हैं। आवस्यक दै राम, समता वंदन आदि सहु ।। १२० ॥ आलय घर को नाम, तेरै घर धरणी नहीं। सब घट तेरे धाम, तू आलय सबको सही॥१२१॥