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________________ अध्यात्म बारहखड़ी अति रहै अनंतर नित्य निरंतर अदभुत तंतर रोग हरा। मुनि अनंत जु निवौं रात्रि जु दिवसैं तन मन विकसैं जोग धरा॥ तुवपद ध्यावे कौँ ( तुव) पुरपावे कौँ नहि जावे कौ फेरि कहूँ। अध्यातम धारा अनुभव धारा तू अनिवारा रहित अहं ॥१०८।। तू अति भूतेश्वर है जु महेश्वर देव जिनेश्वर अतिथि गुरो। अति अनत विधानो अमन अमांनो अतिगति जानो धर्म धुरो।। प्रभुजी अति चेता मुक्ति जनेता तत्त्व प्रणेता चित्त हरो। अति ही मद टारी साधु सुधारों अमृत धारी मृत्यु हरों ।। १०९॥ तू अविरति हारी विरति विहारी अरति प्रहारी अमति हो। तू है अतिकामो प्रभु अकामो राम विरामो सुगति करो। तू प्रभु अतिपूतो अति अवधूतो है जु अभूतो भूत महा। अतिकर्म विनासा पाप प्रनासा धर्म प्रकासा गुरनि कहा ॥११० ।। - दोहा - अतिहि अनातंको प्रभू, अभय अभव भावेस। विभू अनादेसो तू ही, सदादेस आदेस ।। १११।। तेरी निर्मापक नहीं, कर्ता जग मैं कोई। अनिर्मान भगवान तू, अति निरवांन जु होइ ।। ११२॥ - कविन - तू अतिक्रांति विश्रांति दयाला, अरिहंता अतिशांत मुनीश। तिर नर सुर खग मुनिवर को मन हरइ न चौरो, अति अवनीश ।। नित्यानित्य जु जगत प्रपंचा, जानें सव अर नहि रति रीस। जीव रषिक जो, नासक कर्मा निरग्रंथो अति कमलाधीस॥११३ ।। इह अदभुत गति देखहु तापैं, सो अध्यातमधार सुसार। अध्यातम धारिनि को तारक, असुधारिनि को है प्रति पार ।। आप अनघ अवसेस नाहि को कर्मनि को जा मांहि लगार। सब सेना ते रहित जु स्वामी, सेनाधर सेवै दरवार॥११४ ।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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