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कस
अध्यात्म बारहखड़ी
अधिकारी अविकारनाथ अति पुण्य प्ररूपा, अपर द्रव्य को लेस नांहि जामैं जु निरूपा अन्य अज्ञताभाव, थकी वह अरुण जगत का, अज्ञ लहैं नाहि जाहि विज्ञ वह धनी भगत का अर्क अनंत सुज्योति धारा, समयसार अतिसार जो । नहीं अलीक अनीक कोई, अजडनाथ भवपार जो ॥ ८१ ॥
अतिक्रम वितीक्रम नांहि, नांहि अनुक्रम जु अविक्रम, अनाचार नहि कोई धीर तू अतिगति विक्रम | नहीं एक अन्याय एक नांही अपराधा, अनुचर एक न पासि, वीर तू प्रबल अबाधा । अतिसोधा अतिबोध तू ही अमला कमला पासि है । अनुचित वहिरंगा न कोई, चिदानंद सुखरासि है ॥ ८२ ॥
अनिरवाच्य अविचार चार तू जगत अधारा, अनुचर तेरे सर्व राव तू जीव सुधारा । नही अमात्य जु कोई अचल अदभुत अवनीपा, मंत्र न तंत्र न कोई मंत्र तूंही जगदीपा । अतुल अतुल अविगत गुंसाई, अवनीपति पूजैं चरन । अखिलोपम अर अति अनोपम, विश्वंभर अवरन वरन ॥ ८३ ॥
अहो अहो कर भास मोहि तिमर जु कौ हंता, ममता रजनी मेटि बोध दिवस ज् प्रगटंता | भव्य कमल प्रतिफुल्ल करन जो पंथ चलावै, विषय विनोद मिटाय नादि सूते हि जगावै । जीव सुचकवो सुमति चकई, विषम विरह तिनकी हरे । अभवि उलूक लहैं न दरसन अर्क
अमितदूति तू धेरै ॥ ८४ ॥
अतुल अनंत प्रताप ताप नहि तेरे सब ही, मिथ्या भाव सुराह तोहि वेढे नहि कव ही ।