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अध्यात्म बारहखड़ी
अमांन सुजान अदेस अलेस, अगाध अवाध असंख्य प्रदेश। अपात्त अतात अमात अजात, अगात अधात अघात प्रभात ।।७४ ।। अधीश अनीश अफंद अछंद, अचिंत्य अत्यंत अमंद अनंद। अमाम अवाम अदाम सुरांम, अभांम अठाम अगाम सुदाम ।। ७५५ ।।
- छंद भुजंगी प्रयात - अदूहो अजूही प्रभू है पुनीता, अपायो कभी नां उपायो प्रणीता। अद्वंदो निकंदो महामोहमाया, अवेदो अभेदो अछेदो अकाया।। ७६ ।। अबादी अनादी अनंतो अनोखो, अकोषो अरोषो असोषो अमोषो। अनापो अमापो अथापो सथापो, नहीं कोई दूजो प्रभू एक आपो।। ७७।। अभक्षा तर्जे जे भ® जे अलक्ष्या, सुपक्षा गर्दै जे दह मोह कक्षा। सुदक्षा लहै तेहि तोकौं प्रभूजी, तू ही है निपक्षो दुपक्षो विभूजी ।। ७८ ।।
- छप्पय - अतिरांमो अभिराम देवपति देव प्रबुद्धा, अतिधामो अतिशांत नाथ जगनाथ बिशुद्धा। अतिनामो विनुनाम ईश जगदीश बिबुद्धा,
अतिठामो विनुठांम भाव तोमैं न अशुद्धा। अति सुगूढ अनगार देवा है अगूढ अवधूत तू। अति अरूढ सुविभूति सेवा है अमूढ अविभूत तू ।। ७९ ।।
अतित्राता अतित्रात छात अतिपात अपाता, अतिदाता सुउदात पार कर तू हि प्रमाता । अतिगाता विनुगात शुद्ध पर्याय स्वरूपा,
अति धाता जु विधात शुद्ध गुण राशि अरूपा। अति सुरूप निजरूप भूपा, अति सुरम्य भगवान तू। यति सुरूप तू अति अनूपा, निरद्वंदी निरवान तू॥ ८० ॥